भोपाल

7 साल से महिलाओं को ‘निर्भया’ बनाते-बनाते 3 गुना तक बढ़ गए महिला अपराध

women crime ratio – साल बदला, समय बदला, तस्वीर भयावह होती गई राजधानी में 10 माह में 3062 महिलाओं के साथ हुए अपराध

भोपालDec 05, 2019 / 03:06 pm

KRISHNAKANT SHUKLA

भोपाल@नीलेंद्र पटेल की रिपोर्ट…
हैदराबाद में युवती के साथ हुए जघन्य अपराध के बाद राजधानी समेत देशभर में एक बार फिर उबाल है। लोग सड़कों पर उतरे हैं। न्याय, सुरक्षा की मांग फिर की जा रही है। यह सब 12 दिसंबर 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप के बाद किया गया था।
निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कानून में जरूरी सुधार और बदलाव किए गए। मध्यप्रदेश सरकार ने भी इसके तत्काल बाद से अब तक के तमाम घोषणाएं की, लेकिन ज्यादातर अमल में नहीं आ सकी।
यही वजह है कि 2012 से 2019 के बीच राजधानी में अपराध तीन गुना तक बढ़ गए। 2019 में जनवरी से अक्टूबर के बीच 3062 अपराध महिलाओं के विरुद्ध हुए, पिछले साल इस बीच 2951 अपराध हुए थे। वहीं 2013 में यह आंकड़ा 1051 था।
1. महिला हेल्पलाइन-टोल फ्री नंबर, एप : हकीकत: 1090, भोपाल के लिए 1091, डायल-100 हेल्पलाइन, ई-कॉप शुरू हुईं, लेकिन इनमें शिकायत सुनने के बाद थाने की पुलिस को ही फारवर्ड कर दिया जाता है, जिसके रवैए से पीडि़त पहले से ही परेशान हैं।
2. अभियुक्त के खिलाफ 15 दिन में चालान: हकीकत: जांच अधिकारी बेपरवाह हैं। उदाहरण-अप्रेल 2019 में मनुआभान टेकरी में 12 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप के मामले में चार माह बाद चालान पेश हुआ। फास्र्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई के लिए पुलिस ने प्रयास नहीं किया।

3. पेट्रोलिंग: हकीकत: निर्भया पेट्रोलिंग, शक्ति स्क्वॉड, मैत्री स्क्वॉड का गठन कर पेट्रोलिंग के लिए महिला पुलिसकर्मियों को व्हीकल उपलब्ध कराए गए। यह वाहन अब पुलिसकर्मियों के लिए घरेलू काम में उपयोग हो रहे हैं।
4. महिला पुलिस वॉलिंटियर-टास्क फोर्स, समितियां : हकीकत: निर्भया कांड के बाद गठन हुआ। वार्ड स्तर पर समर्थ संगिनी समितियों को गठन हुआ। सालभर बाद समितियां, वालिंटियर-टास्क फोर्स सब गायब हो गईं।

6. अपराध कायमी: हकीकत: अधिकतर मामलों में पुलिस आवेदन लेने की मांग करती है। थाने की सीमा विवाद में उलझने के मामले सामने आते हैं। एमपी नगर के बियर बार में महिला पत्रकार के साथ हुई छेड़छाड़, मारपीट की घटना 15 दिन बाद दर्ज हुई। घटना स्थल की वीडियो ग्राफी तक नहीं होती।
7. कानूनी-मानवीय मदद हकीकत: रिपोर्ट दर्ज होने के बाद यथा संभव थाने में पीडि़ता को नहीं बुलाया जाए। फरियादी को थाने में सुरक्षित माहौल, उसके साथ शालीन व्यवहार किया जाए। लेकिन, ऐसा नहीं हो रहा। विधिक सहायता के लिए थानों में वकीलों की सूची लगी हो। किसी थाने में नहीं है।

 

8. हास्टल, संवेदनशील स्थल, अंधेरे स्थल: हकीकत: शहर में करीब 17 अतिसंवेदनशील, 22 संवेदनशील स्थल हैं। इनमें कहीं भी पुलिस की रेगुलर पेट्रोलिंग नहीं होती। हर रोज महिलाओं से छेड़छाड़, पीछा करने की घटनाएं हो रही हैं। अंधेरे मार्गों पर स्ट्रीट लाइट अब तक नहीं हैं। हास्टलों के बाहर मनचलों की टोलियां तैनात रहती हैं।
9. पीडि़त प्रतिकार योजना: हकीकत: निर्भया फंड समेत अन्य मद से प्रशासन 20 फीसदी रकम ही बजट का खर्च कर पाती है। 80 फीसदी एसिड, दुष्कर्म पीडि़ताओं को पीडि़त प्रतिकार योजना का लाभ नहीं मिलता।

10. लोक परिवहन: हकीकत: स्कूल-कालेज, लोक परिवहन के अधिकतर वाहनों में सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं। चालक-परिचालक का पुलिस वेरीफिकेशन तक नहीं है। स्कूल वाहनों में महिला केयर टेकर सवार नहीं होतीं।
11. साइबर अपराध, जाकरुकता हकीकत: बच्चों, महिलाओं को साइबर अपराध से बचाने के कोई जमीनी प्रयास नहीं हो रहे। जागरुकता कार्यक्रम भी कोई बड़ी घटना के बाद ही शुरू किए जाते हैं।

 

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डीजीपी ने वीडियो कॉफ्रेंसिंग कर सभी आईजी और एसपी को निर्देश दिए हैं कि महिला अपराधों के मामले में विशेष ध्यान रखें और तुरंत कार्रवाई करें। साथ ही फरियादी से बात करें, उसके परिवारजन से ऐसी कोई बात न करें जो दुख की घड़ी में अव्यवाहारिक हो। अलग-अलग क्षेत्रों में घटना होने पर भी सीमा विवाद में नहीं उलझें। संबंधित थाना क्षेत्र की पुलिस तुरंत कार्रवाई करें। – अन्वेष मंगलम, एडीजी,

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