कमलनाथ सरकार में अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था, लेकिन यह लागू नहीं हो सका। शिवराज सरकार भी इस वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के पक्ष में है, लेकिन मामला कोर्ट में होने और कानूनी पेंचदियों के चलते यह लागू नहीं हो पा रहा है। इसे लागू नहीं होने के कारण दोनों दलों में आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। कोर्ट में ओबीसी का पक्ष मजबूती से रखने के लिए कांग्रेस ने देश के नामी वकीलों को किया है, वहीं सरकार भी कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती। अब निगाहें कोर्ट पर हैं। इस विवाद के बीच राजनीति भी खूब हो रही है।
सुनवाई ठप, स्टाफ बेकाम – कमलनाथ सरकार में गठित अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के दौरान यहां 28 लोगों को स्टाफ था। आयोग में लोगों की सुनवाई भी हो रही थी, लेकिन सत्ता बदलने के साथ ही सब कुछ बदल गया। सरकार ने धनोपिया की नियुक्ति निरस्त कर दी। वहीं आयोग अध्यक्ष जेपी धनोपिया के कक्ष में ताला डाल दिया गया। स्टाफ ने सहयोग भी बंद कर दिया। इसको लेकर धनोपिया कोर्ट चले गए। तर्क दिया कि आयोग संवैधानिक है, सरकार इसे इस तरह समाप्त नहीं कर सकती। इसको लेकर कोर्ट में स्थगन है। धनोपिया का कहना है कि वे आयोग के अध्यक्ष है। सरकार आयोग को सहयोग नहीं कर रही है।
कल्याण आयोग को चाहिए दफ्तर – राज्य सरकार ने हाल ही में अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन कर दिया। पूर्व मंत्री एवं विधायक गौरी शंकर बिसेन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इन्हें मंत्री दर्जा भी दे दिया गया है। बिसेन ने नई जिम्मेदारी तो संभाल ली है, लेकिन अभी आयोग का काम स्पष्ट नहीं है। आयोग का दफ्तर कहां होगा, अभी तय नहीं है। आयोग के पास अभी अमला भी नहीं है।