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सरकार बनाने में मेहनत की, सरकार बनी तो ये क्या किया

locationभोपालPublished: May 21, 2019 11:09:28 pm

Submitted by:

anil chaudhary

किसी ने पति-भाई का साथ देने तो किसी ने उसूलों के कारण छोड़ी पार्टी

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जितेन्द्र चौरसिया, भोपाल. प्रदेश की सत्ता में 15 साल बाद लौटी कांग्रेस का दामन कई भाजपा नेताओं ने थामा, लेकिन ऐसे नेता भी कम नहीं हैं, जो कांग्रेस छोड़ गए। किसी ने पति या भाई का साथ देने के लिए पार्टी से किनारा किया तो किसी को अपने उसूल ज्यादा भाये या अनदेखी सहन नहीं हुई। इनमें हिमाद्री सिंह भी शामिल है, जिन्हें भाजपा ने शहडोल लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया। कई चेहरे छोटे भी कांग्रेस छोड़ गए। जबकि, प्रदेश की सत्ता में आने तक उन्होंने भरपूर साथ दिया था।
हिमाद्री सिंह – कांग्रेस ने शहडोल लोकसभा सीट के उपचुनाव में हिमाद्री को उतारा था। तब वे भाजपा के ज्ञान सिंह से हार गई थीं, लेकिन बाद में समीकरण बदले और इस चुनाव में हिमाद्री ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। वह भी तब, जबकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। हिमाद्री के माता-पिता दोनों कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं। हिमाद्री के पति नरेंद्र सिंह मरावी भाजपा के प्रदेश अजा-जजा मोर्चा अध्यक्ष हैं। माना जाता है कि इसी कारण हिमाद्री ने दल बदला था।
प्रकाश लालवानी – इंदौर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी के छोटे भाई प्रकाश ललवानी ने चंद दिनों पहले ही कांग्रेस छोड़ी है। प्रकाश बरसों से कांग्रेस में थे। शंकर के आइडीए अध्यक्ष रहने पर भी प्रकाश कांग्रेस में ही रहे। यहां तक कि नगर निगम चुनाव में भी दोनों भाई प्रतिद्वंद्वी पार्टी में रहकर राजनीति करते रहे।
करुणा शर्मा – करुणा कांग्रेस में आइटी सेल में मीडिया समन्वयक रह चुकी हैं। पूर्व में करुणा महिला कांग्रेस में थीं, लेकिन अर्चना जायसवाल के महिला कांग्रेस से हटने के बाद मुख्य कांग्रेस में पहुंच गई थीं। करुणा की विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी नेताओं से पटरी नहीं बैठी। इस पर उन्होंने कांग्रेस छोड़कर सपाक्स ज्वॉइन कर ली। फिलहाल वे सपाक्स में राष्ट्रीय प्रवक्ता हंै।

अजय दुबे – आरटीआइ एक्टिविस्ट अजय विधानसभा चुनाव के कुछ समय पूर्व ही कांग्रेस से जुड़े थे। उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता नहीं ली, लेकिन प्रदेश कांग्रेस के आइटी विभाग की कमान संभाली थी। विधानसभा चुनाव में तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस के साथ मिलकर खूब लड़े। जब सरकार बनी तो पटरी नहीं बैठी। मुख्यमंत्री कमलनाथ के कई फैसलों का विरोध किया। फिर इस्तीफा दे दिया। अब कांग्रेस के कई कदमों का विरोध करते हैं।
– एक विधायक को रोका
कांग्रेस ने इस दौरान अपने एक विधायक को पार्टी छोडऩे से रोका भी है। धरमपुरी से विधायक पांचीलाल मेढ़ा ने कमलनाथ को अपना इस्तीफा भेज दिया था। मेढ़ा क्षेत्र में पुलिस अफसरों से नाराज थे। बाद में गृहमंत्री बाला बच्चन के मनाने और सीएम कमलनाथ के आश्वासन पर मेढ़ा मान गए थे।
– जाने वाले कम, आने वालों की फौज
सत्ता में 15 साल बाद आने का असर ऐसा रहा कि कांग्रेस में आने वालों की कमी नहीं रही। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा छोड़कर प्रमिला सिंह आईं तो कांग्रेस ने उन्हें शहडोल प्रत्याशी बनाया। इनके अलावा भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष रहे धीरज पटेरिया, पूर्व विधायक चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी, पूर्व विधायक निशिथ पटेल, जितेंद्र डागा, पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया, पूर्व विधायक भैया साहब लोधी सहित दर्जनों नेताओं ने कांग्रेस का दामन थामा। भाजपा के अलावा बसपा, सपा और गोंगपा छोड़कर कांग्रेस में आने वाले भी कई नेता रहे।
– वजह क्या?
कांग्रेस से जाने वालों की संख्या कम और आने वालों की संख्या ज्यादा रहने के दो प्रमुख कारण माने जा रहे हैं। पहला कारण प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनना रहा। कोई भी सत्ता का साथ नहीं छोडऩा चाहता था, इसलिए नाराजगी के बावजूद कम लोग कांग्रेस से टूटे। वहीं, भाजपा में अनदेखी के कारण नेता नाराज होकर सत्ता का साथ पाने आ गए। दूसरा बड़ा कारण कमलनाथ और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का प्रबंधन रहा। कमलनाथ ने ज्यादा नाराजगी वाले नेताओं को मना लिया। दिग्विजय भी रूठों को थामने में आगे रहे। भाजपा में यह प्रबंधन इस बार लगभग फेल रहा।

कांग्रेस अपने हर कार्यकर्ता का ध्यान रखती है। पार्टी में कभी थोड़ी-बहुत नाराजगी होती है तो भी मना लिया जाता है। कुछ मामलों में जरूर ऐसा नहीं हो पाता, इसलिए हर व्यक्ति का अपना निर्णय होता है।
– चंद्रप्रभाष शेखर, संगठन प्रभारी, प्रदेश कांग्रेस
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