क्यों खास है यह पौधा
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जिस अतिदुर्लभ प्रजाति के शल्यकर्णी पौधे को लगाया है। वो बेहद खास पौधा है। इस पौधे का उपयोग महाभारत के युद्ध के समय किया गया था। कहा जाता है कि कुरूक्षेत्र में महाभारत के युद्ध में शल्यकर्णी की पत्ती और छाल को घायल सैनिकों के उपचार के लिए प्रयोग में लाया गया था। इसकी पत्तियों और छल के रस को कपड़े में डूबा कर गंभीर घाव में बांध दिया जाता था। जिसकी बाद घाव बिना किसी चीर-फाड़ के बाद आसनी से भर जाता था। बताया जाता है कि इस पेड़ की इसी खासियत के कारण ही महाभारत काल में घायल सैनिकों ने इसका उपयोग किया था।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जिस अतिदुर्लभ प्रजाति के शल्यकर्णी पौधे को लगाया है। वो बेहद खास पौधा है। इस पौधे का उपयोग महाभारत के युद्ध के समय किया गया था। कहा जाता है कि कुरूक्षेत्र में महाभारत के युद्ध में शल्यकर्णी की पत्ती और छाल को घायल सैनिकों के उपचार के लिए प्रयोग में लाया गया था। इसकी पत्तियों और छल के रस को कपड़े में डूबा कर गंभीर घाव में बांध दिया जाता था। जिसकी बाद घाव बिना किसी चीर-फाड़ के बाद आसनी से भर जाता था। बताया जाता है कि इस पेड़ की इसी खासियत के कारण ही महाभारत काल में घायल सैनिकों ने इसका उपयोग किया था।
रीवा में पाया जाता है ये पौधा
शल्यकर्णी पौधे को लेकर कहा जाता है कि यह पौधा मध्यप्रदेश के रीवा जिले में पाया जाता है। इस पौधे के रीवा में पाए जाने को लेकर कई तरह की किवदंतियां भी हैं। रीवा में शैल्यकणी के मौजूद होने के प्रमाण कुछ बैगा आदिवासियो ने दिये थे। ऐसा कहा जाता है कि जंगल मे कुछ बैगा आदिवासियों ने मछली का शिकार किया और मछली के शरीर में घाव भी किया गया था। बाद में उसे शल्यकर्णी के पत्तें मे बांध कर घर ले आये लेकिन मछली के कटे हुए घाव भर गए थे। शल्यकर्णी का उल्लेख महाभारत के साथ-साथ चरक सहिता में भी मिलता है। वन विभाग ने शल्यकणी को संरक्षित कर पौधों को रोपित करने का प्रयास कर रहा है।
शल्यकर्णी पौधे को लेकर कहा जाता है कि यह पौधा मध्यप्रदेश के रीवा जिले में पाया जाता है। इस पौधे के रीवा में पाए जाने को लेकर कई तरह की किवदंतियां भी हैं। रीवा में शैल्यकणी के मौजूद होने के प्रमाण कुछ बैगा आदिवासियो ने दिये थे। ऐसा कहा जाता है कि जंगल मे कुछ बैगा आदिवासियों ने मछली का शिकार किया और मछली के शरीर में घाव भी किया गया था। बाद में उसे शल्यकर्णी के पत्तें मे बांध कर घर ले आये लेकिन मछली के कटे हुए घाव भर गए थे। शल्यकर्णी का उल्लेख महाभारत के साथ-साथ चरक सहिता में भी मिलता है। वन विभाग ने शल्यकणी को संरक्षित कर पौधों को रोपित करने का प्रयास कर रहा है।