सदियों सर चले आ रहे भोजशाला विवाद को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष के लोगों के अलग-अलग मत हैं। हिंदुओं का दावा है कि इस जगह देवी सरस्वती का मंदिर था जिसे सरस्वती सदन के नाम के नाम से जाना जाता था। 1456 ई में महमूद खिलजी ने सरस्वती सदन में मौलाना कमालुद्दीन की दरगाह बना दी। 1857 में सरस्वती सदन की खुदाई में वाग्देवी की मूर्ति मिली। 1880 में भोपावर पॉलिटिक्स एजेंट मेजर किनकेड मूर्ति को लंदन ले गया। 1909 में धार रियासत ने भोजशाला परिसर को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। 1935 में दिवान ने भोजशाला को मौलाना कमालुद्दीन की मस्जिद बताते हुए नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी और फिर आजादी के बाद यह विवादित परिसर पुरातत्व विभाग के अधीन हो गया।
इसके अलावा याचिकाकर्ताओ की और से भोजशाला से लंदन ले जाई गई वाग्देवी की मूर्ति को भी वापस लाने की मांग की गई है। बुधवार को मामले की पहली सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार, केंद्र सरकार, पुरातत्व विभाग और मौलाना कमालुद्दीन ट्रस्ट समेत अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है।
अभी प्रशासन ने हिंदुओं को प्रत्येक मंगलवार को पूजा करने के साथ ही मुसलमानों को शुक्रवार की नमाज अदा करने की इजाजत दे रखी है, हर साल बसंत पंचमी के मौके पर यहां सरस्वती जन्मोत्सव मनाया जाता है लेकिन इसी दौरान शुक्रवार की नमाज और बसंत पंचमी अगर एक ही दिन पड़ जाती है, तो विवाद की स्थिति बन जाती है।
