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पीडि़त गर्भवती महिलाओं की नहीं कराई सोनोग्राफी, ब्लड सैंपल रिपोर्ट भी छिपाई

locationभोपालPublished: Nov 19, 2018 12:49:47 am

Submitted by:

Ram kailash napit

जीका बुखार की रोकथाम में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही

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Zika Virus

भोपाल. प्रदेश में दिनों दिन जीका से पीडि़त मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग जीका की रोकथाम के लिए गंभीर नहीं दिख रहा है। विभाग की लापरवाही को इस बात से समझा जा सकता है कि गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी तो दूर की बात है, इन महिलाओं को अब तक ब्लड सैपल की रिपोर्ट तक ही नहीं दी गई। जबकि नियम यह कहता है कि गर्भवती महिला को प्रथम तीन महीने में जीका होने पर हर माह सोनोग्राफी करना जरूरी है। इससे यह पता लगाया जाता है कि कहीं गर्भस्थ शिशु पर जीका का नकारात्मक असर तो नहीं हो रहा।

पहला केस
बी सेक्टर दामखेड़ा की रहने वाली जीका पीडि़त रोशनी (परिवर्तित नाम) ने बताया कि करीब एक सप्ताह पहले एक टीम आई थी। उस समय मुझे बुखार आ रहा था। टीम ब्लड सैंपल लेकर चली गई, लेकिन अब तक न तो कोई रिपोर्ट दी है और न ही यह बताया कि ब्लड सैंपल क्यों लिए थे। सोनोग्राफी तो हमने खुद करवाई थी।
दूसरा केस
सबरी नगर निवासी सरोज यादव (परिवर्तित नाम) ने बताया कि मलेरिया विभाग की टीम आई थी, उन्होंने पूछा प्रग्नेंट हो, हमने हां कहा तो उन्होंने हमारा नाम और जानकारी लिख ली। दूसरी टीम आई और कहा कि ब्लड सैंपल लेना है, लेकिन मुझे तो बुखार तक नहीं आया तो ब्लड सैंपल क्यों लिए पता नहीं, रिपोर्ट भी नहीं दी।
स्वास्थ्य विभाग पीडि़तों को ब्लड सैंपल रिपोर्ट देने में लापरवाही बरत रहा है। दामखेड़ा निवासी ने बताया कि उसकी पत्नी का ब्लड सैंपल लिया था, क्यों लिया यह नहीं पता।
पीडि़तों को रिपोर्ट देने से क्या फायदा : विभाग कहता है कि पीडि़तों को रिपोर्ट देने से क्या फायदा। इसके पीछे उनका तर्क है कि जीका अपने आप ठीक होने वाली बीमारी है, ऐसे में रिपोर्ट दें या न दें कोई फर्क नहीं पड़ता।
ऐसे कैसे रखेंगे नजर…
विभाग के आला अधिकारी इन गर्भवती महिलाओं को सर्विलांस पर रखने के दावे कर रहा है। हालांकि जब पीडि़ताओं से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ब्लड सैंपल लेने के बाद से अब तक ना कोई व्यक्ति ना कोई टीम आई। अब विभाग ऐसे कैसे महिलाओं पर नजर रखेंगा पता नहीं।
गर्भवती महिलाएं
कुल गर्भवती महिलाएं 40
प्रथम तीन महीने की 21
विदिशा 15
भोपाल 02
सीहोर 02
सागर 01
अन्य 01

पीडि़तों को ब्लड रिपोर्ट देने से कोई फायदा नहीं है, क्यूंकि यह इतनी घातक बीमारी नहीं है। अगर कोई दिक्कत होती है तो हम उन पर नजर रखे हुए हैं।
डॉ.़ अजय बरोनिया, संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य विभाग
आज पता चलेगा की किस वायरस ने किया अटैक
स्वास्थ्य विभाग ने जीका के वायरस का पता लगाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट वायरोलॉजी (एनआईवी) पुणे को सैंपल भी भेजे थे। हालांकि वहां से अब तक कोई रिपोर्ट नहीं आई है। स्वास्थ्य विभाग की माने तो सोमवार को एनआईवर पुणे से यह रिपोर्ट आएगी और पता चलेगा कि वायरस का कौन सा सीरोटाइप मप्र में एक्टिव है। गौरतलब है कि मप्र में जीका का आगमन राजस्थान के रास्ते हुआ था। इसलिए स्वास्थ्य विभाग यह मानकर चल रहा है कि यहां राजस्थान वाला वायरस ही एक्टिव है। राजस्थान में एक्टिव वायरस माइक्रोसैफेली (इससे गर्भस्थ शिशु के दिमाग का विकास रुक जाता है) नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रथम तीन महीने की गर्भवती महिला अगर माइक्रोसैफेली वायरस से पीडि़त होती हैं तो ऐसी महिलाओं को गर्भपात कराने की सलाह दी जाती है।
आ सकती है नई एडवायजरी
भोपाल. जीका का प्रभाव देखते हुए केन्द्र सरकार ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए नई एडवायजरी तैयार कर रही है। माना जा रहा है कि नई एडवायजरी के अनुसार संक्रमित क्षेत्रों में अब चार महीने तक ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं हो सकेगा। अगर ऐसा होता है तो शहर में जीका प्रभावित क्षेत्रों के रहवासी चार महीने तक ब्लड डोनेट नहीं कर सकेंगे।
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