संघर्ष में बीता सामंत का बचपन
चार साल की आयु में सामंत के सिर से पिता का साया उठा गया था। ओडिशा के कटक जैसे बेहद पिछड़े जिले के दूरदराज के गांव में जन्मे थे। उनका गांव जगतसिंहपुर जिले में आता है। वह परिवार चलाने के लिए सब्जी बेचकर विधवा मां का सहारा बने, विुपरीत परिस्थितियों के बाद भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अलग करने उन्होंने ठान लिया था। एमएससी (कैमेस्ट्री) से करने और उत्कल विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में कुछ समय पढ़ाने के दौरान वह इस विषय पर विचार करते रहते थे कि कुछ अलग करेंगे। इसके लिए तभी से कदम बढ़ा दिए।
ऐसे चल पड़ी जिंदगी की गाड़ी
वर्ष 1992-93 में पांच हजार रुपये की पूंजी और 12 छात्रों से उन्होंने भुवनेश्वर में कीट (कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी) की स्थापना की जिसकी पूंजी आज 800 करोड़ से भी ज्यादा है। कीट चला ही नहीं दौडऩे लगा तो 54 वर्षीय डा.सामंत को असली लक्ष्य का ख्याल आया कि गरीब आदिवासी बच्चों को पहली कक्षा से पोस्ट ग्रेजुएट तक की शिक्षा, छात्रावास और भोजन मुफ्त में मुहैया कराना है। इसके लिए अच्युत सामंत ने 1997 में डीम्ड यूनिवर्सिटी कीट के अन्तर्गत किस (कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज) की स्थापना की। यहां पर आज करीब 27 हजार आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं। निदेशक (पीआर) श्रद्धांजलि नायक बताती हैं कि आदिवासी बच्चों के प्रवेश आधार कार्ड और बीपीएल शो करने पर ही कर दिए जाते हैं। बताते हैं कि खाना और पढऩे का इंतजाम इतना बेहतर होता है कि बच्चे छुट्टी में हॉस्टल में रह जाते हैं। इस प्रकार इतने बड़े पैमाने पर आदिवासी बच्चों को मुफ्त शिक्षा, खाना, हास्टल देने वाला विश्व का यह पहला संस्थान बना। इंजीनियरिंग, एमबीए, मेडिकल जैसी तालीम के बाद यहां के बच्चे बेहतर पेशों में जाते हैं। दुतीचंद यहीं की हैं। तीरंदाजी में नेशन फेम खिलाड़ी हुए हैं।
संपत्ति के नाम जीरो हैं सामंत
डा. अच्युत सामंत खुद कहते हैं कि जायदाद के नाम पर उनके पास कुछ नहीं है। न्यूनतम जरूरतों का खर्चा विश्वविद्यालय उठाता है। उनका बैंक बैलेंस भी शून्य हैं। संस्थान को चलाने के लिए वह किसी से चंदा नहीं मांगते। हां, लोग अपनी मर्जी दे भी देते हैं। कीट और किस परिसर में अच्युत सामंत साइकिल से चलते हैं या फिर पैदल घूमते हैं। उनके पास यूनिवर्सिटी परिसर में कोई दफ्तर तक नहीं है। किस में तो वह एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठ जाते हैं, वही उनका दफ्तर हो जाता है। किस और कीट के दस हजार से ज्यादा स्टाफ की संस्थान और सामंत के प्रति आस्था का आलम यह है कि वेतन का तीन प्रतिशत हर महीने संस्थान को डोनेशन देते हैं। इस जज्बे को देखकर लगता है कि दो हजार साल पहले कलिंग की एक खौफनाक लड़ाई ने सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन कर भारत का इतिहास मोड़ दिया था। आज उसी कलिंग में अशिक्षा के खिलाफ एक लड़ाई चल रही है जिसके नायक हैं डा. अच्युत सामंत।