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नेताजी के साथ लड़ी आजादी की लड़ाई, देहांत के बाद भी देशप्रेम निभाती रही लेफ्टीनेंट आर्या

locationभुवनेश्वरPublished: Dec 21, 2019 10:21:39 pm

तन समर्पित मन समर्पित और ये जीवन समर्पित, चाहता हूं ऐ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं लेफ्टीनेंट मानवती आर्या के (Azad Hind Fauj lieutenant Manavathi Arya) सफर को यह पंक्तियां पूरी तरह से चरितार्थ करती हैं…

नेताजी के साथ लड़ी आजादी की लड़ाई, देहांत के बाद भी देशप्रेम निभाती रही लेफ्टीनेंट आर्या

नेताजी के साथ लड़ी आजादी की लड़ाई, देहांत के बाद भी देशप्रेम निभाती रही लेफ्टीनेंट आर्या

(कटक,महेश शर्मा ): नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में बतौर लेफ्टीनेंट काम करने वाली कैप्टन मानवती आर्या का पार्थिव शरीर उनकी इच्छा के अनुसार कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया गया। नेताजी सुभाषचंद बोस की सहयोगी रहीं मानवती आर्या ने कानपुर में शुक्रवार की रात अंतिम सांस ली।


बकौल इतिहासकार रामकिशोर वाजपेयी मानवती जी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्मस्थली कटक भी दो बार जा चुकी थी। आजाद हिंद फौज से जुड़ी रहने के कारण ओडिशा ने उन्हें हाथोंहाथ लिया। वाजपेयी उनके दिशा निर्देशन में लिखी गयी पुस्तक ‘दि जजमेंट’ के सह लेखक हैं। उनका कहना है कि मानवती जी जब भी नेताजी की जन्मस्थली कटक गयीं तो ओडिशा ने उन्हें हाथोंहाथ लिया।

 

म्यांमार (पूर्व का नाम बर्मा) के मैक्ट्रीला शहर में 30 अक्टूबर 1920 को जन्मी स्वर्गीया मानवती आर्या छात्र जीवन में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस के संपर्क में आ गयी थी। उन्हें रानी झांसी रेजीमेंट में लेफ्टीनेंट की जिम्मेदारी मिली थी। बीती तीस अक्टूबर को वह सौवें वर्ष में प्रवेश कर गई थी। जीवन के अंतिम वर्षों में भी नेताजी का नाम उनके कान में जैसे ही पड़ता उनके चेहरे पर एक जोश सा दिखाई पड़ने लगता था।

 

वह अक्सर मीटिंगों में कहा करती थी कि नेता जी कहा करते थे कि आजादी हाथ जोड़ने से नहीं मिलती है। उसे छीननी पड़ती है। इसी जोश ने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा, का नारा बुलंद हुआ और जन-जन में आजादी की लड़ाई का जोश भर दिया। इस नारे ने आजादी के योद्धाओं का कारवां काफी लंबा तैयार कर दिया। मानवती आर्या को आजादी की लड़ाई और अंग्रेजों के जुल्म के किस्से अपने पिता श्यामाप्रसाद पांडेय से सुना करती थी। यह कहा जा सकता है कि देशभक्ति के संस्कार उन्हें पिता से ही मिले।

 

मानवती आर्या कहा करती थी कि सुभाषचंद्र बोस 20 जून 1943 को जापान पहुंचे और टोकियो रेडियो से घोषणा की कि अंग्रेजों से यह आशा करना व्यर्थ है कि वह स्वतः अपना साम्राज्य छोड़ देंगे। हमें भारत के भीतर और बाहर स्वयं अपनी स्वतंत्रता के लिए स्वयं संघर्ष करना होगा। नेताजी के जोश से प्रभावित होकर रासबिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 46 वर्षीय सुभाषचंद्र बोस को इसका नेतृत्व सौंप दिया। इसी के बाद इस फौज में कई क्रांतिकारी शामिल हुए, उसमें एक हम भी थे। जुलाई 1944 में नेता जी कन्नूर कैंप में ठहरे थे।

 

इसी दौरान कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने हमें नेताजी से मिलवाया था। मानवती जी अपनी यादों के किस्से बड़े गर्व के साथ अक्सर शेयर करती थी। वह बताती थी कि इसी मुलाकात में नेताजी ने उनसे सवाल पूछा कि तुम आजाद हिंद फौज क्यों ज्वाइन करना चाहती हो? तो हमने कहा कि नेताजी घुटन हो रही है, आजादी चाहिए। शरीर में जितना खून है हम बहा देंगे पर अंग्रेजों के जुल्म सितम अब नहीं सहेंगे। हमारी बात से प्रभावित होकर उन्होंने महिला विंग का कमांडर बना दिया। मानवती जी ने क्रांतिकारी पत्रकार डॉ.केसी आर्य से विवाह किया। सन 1947 में डा.केसी आर्य के बुलावे पर कानपुर आ गए।

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