क्या कहता है बिल…
नागरिकता संशोधन विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है। इस विधेयक से मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है। लोकसभा में हालांकि बीजेपी नीत एनडीए सरकार बहुमत में है पर राज्यसभा में उसके सदस्य कम है। विधेयक को पारित करने को लेकर असल चुनौती राज्यसभा में है। इसको लेकर एनडीए के सहयोगी संगठन भी नाक भौं सिकोड़ रहे हैं। मोदी सरकार को राज्यसभा में दूसरे दलों से सहयोग की जरूरत पड़ेगी। समझा जाता है कि बीजेडी के साथ ही एआईडीएमके व कुछ छोटे दल राज्यसभा में सरकार के पाले में दिख सकते हैं। इधर शिवसेना ने भी इस बिल को लेकर केंद्र सरकार का समर्थन करने की बात कही है।
राज्यसभा में अंकों का खेल…
राज्यसभा में कुल 239 सदस्य हैं। सभी मतदान करें तो 120 वोटों की जरूरत पड़ेगी। एनडीए सदस्यों की संभावित संख्या 104 तक पहुंचती है। इनमें बीजेपी 83, बीजेडी 7, एआईडीएमके 11, अकाली दल 3 हैं। ऐसे में सरकार को राज्यसभा में कड़ी चुनौती मिल सकती है। यहां पर कांग्रेस 46, टीएमसी 13, सपा 9, सीपीएम और डीएमके 5-5 तथा आरजेडी, एनसीपी और बसपा के 4-4 सदस्यों समेत बाकी दलों को मिलाकर विपक्ष के पास कुल 108 का समर्थन है। शिवसेना का तुर्रा यह कि जब 25 साल तक नई नागरिकता पाने वालों को वोटिंग का अधिकार न दिया जाए। राज्य सभा में शिवसेना के पास चार सांसद हैं।
हो रहे है विरोध प्रदर्शन
बिल को लेकर जहां विपक्ष सरकार से असहमत है वहीं पूर्वोत्तर के राज्यों में इसके विरोध में प्रदर्शन हो रहे है। इसी सिलसिले में पूर्वोत्तर के छात्र संगठनों की ओर से मंगलवार को पूर्वात्तर बंद का आह्वान किया गया है। हालांकि जो पूर्वोत्तर राज्य संविधान की 6वीं अनुसूची और इनर-लाइन रेग्युलेशन के अंतर्गत हैं को सीएबी के दायरे से बाहर रखा गया है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम राज्य इनर–लाइन रेग्युलेशन में और असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा राज्यों में 6वीं अनुसूची के अंतर्गत कई स्वायत्त जिला परिषदें हैं। भाजपा शासित मणिपुर को भी इनर लाइन रेग्युलेशन के अंतर्गत सीएबी के दायरे से बाहर रखा हैं। हालांकि सिक्किम के बारे में इस बिल में कुछ भी नही कहा गया।
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