सभी धरोहरों को लेकर चिंतित है केंद्र
उन्होंने कहा कि संरक्षण का मुद्दा राज्य की चिंता हो सकती है पर केंद्र पूरी तरह से अलर्ट है और कोर्णाक ही नहीं, बाकी धरोहरों को लेकर भी उसकी चिंताएं हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रूढ़की ने कोर्णाक पर अपनी रिपोर्ट दी है। इसके संरक्षण को लेकर उच्चस्तरीय मीटिंग हुई है, जिसमें रिपोर्ट पर चर्चा की गई थी। दस दिसंबर को मंत्रालय के अधिकारियों और विशेषज्ञों की टीम कोर्णाक जाकर सूर्य मंदिर का निरीक्षण करेगी। इसके बाद राज्य सरकार के साथ बैठक करेगी। संरक्षण और रखरखाव को लेकर समय-समय पर बैठकें की जाएंगी।
विश्व धरोहर में शामिल कोर्णाक
देश में कोर्णाक समेत 37 धरोहरें ऐसी हैं, जिन्हें विश्व धरोहर का दर्जा यूनेस्को से मिला है। वह मंदिर जिसकी भव्यता को देखने 6,000 विदेशियों समेत 28 लाख से ज्यादा पर्यटक हर साल यहां आते हैं, लेकिन इन पर्यटकों को भी शायद इस तथ्य का अंदाजा नहीं कि सूर्यदेव के मुख्य मंडप वाले हिस्से में परिंदा भी पर नहीं मारने पाता, दर्शन के लिए किसी के उधर जाने का तो सवाल ही नहीं। तीन मंडपों में बंटे इस मंदिर का मुख्य मंडप और नाट्यशाला ध्वस्त हो चुके हैं और अब उनका ढांचा ही शेष है। इसके बीच के हिस्से को जगमोहन मंडप या सूर्य मंदिर कहते हैं। इस वक्त इसे स्टील के सैकड़ों पाइपों का सहारा दिया गया है। जगमोहन मंडप पिछले 115 साल से बंद पड़ा है। उसे पर्यटकों के वास्ते खुलवाने की विशेषज्ञों की कोशिशों ने अब उम्मीद बंधा दी है।
मंदिर खोलने की सिफारिश
कोणार्क मंदिर को गंग वंश के राजा नृसिंहदेव ने 1255 ई. में बनवाया था। मुगल काल में कई हमलों और प्राकृतिक आपदाओं के चलते मंदिर को खराब होता देख 1901 में तत्कालीन गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह से रेत से भर दिया गया। इस काम में तीन साल लगे। हालांकि 1994 में इटली के वास्तुशास्त्री और यूनेस्को के सलाहकार प्रोफेसर जॉर्जियो क्रोसी ने अपने एक अध्ययन में पाया कि उक्त मंडप को बंद किए जाते वक्त उसकी दशा शायद उतनी खतरनाक नहीं थी, जितने का अनुमान लगाया गया। क्रोसी और बाद में और भी कई विशेषज्ञों ने कुछ मरम्मत और दूसरे सुझावों के साथ बालू हटाने और मंदिर खोलने की सिफारिश की।
कोणार्क मंदिर के संरक्षण पर आठ साल पहले मार्च 2010 में हुई विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में भी कुछ ऐसी ही राय बनी। इसकी सिफारिशें लागू करवाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के महानिदेशक की अध्यक्षता में संचालन समिति बनाते हुए उसे कई अधिकार दे दिए गए।
बनाई गई समिति
ओडिशा सरकार के सांस्कृतिक सचिव, आइआइटी खडग़पुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और उत्कल यूनिवर्सिटी के पुरातत्व विभाग के प्रमुख रहे और अब प्राचीन इतिहास विभाग के प्रमुख प्रोफेसर सदाशिव प्रधान, केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआइ), रुड़की के निदेशक और पुरी के जिलाधिकारी को इस समिति का सदस्य बनाया गया।
मंदिर की मौजूदा हालत का हो रहा अध्ययन
कोणार्क मंदिर से जुड़ी किसी भी योजना को जांच-परख के बाद मंजूरी देने का अधिकार इसी समिति को है। हाल ही में सीबीआरआइ की एक टीम ने एंडोस्कोपी कर मंदिर के भीतर के फोटो लिए और इसके वीडियो भी बनाए, जिनका अध्ययन किया जा रहा है। समिति के सदस्य सदाशिव प्रधान तो साफ तौर पर कहते हैं कि ”सूर्य मंदिर के गर्भगृह मूर्तिस्थल (जगमोहन मंडप) को पर्यटकों के लिए पहले की तरह खोला जा सकता है।” वे दो साल पहले ही दी जा चुकी रिपोर्ट पर अभी तक कोई भी काम शुरू न होने पर हैरत में हैं। प्रधान के शब्दों में, ”भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण चाहे तो कोणार्क मंदिर ठीक वैसा ही हो सकता है, जैसा कि 112-115 साल पहले था। केंद्र सरकार की इच्छाशक्ति इसे भव्य रूप दे सकती है।”