बीजेडी में मुख्यमंत्री का चेहरा चार बार मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हैं तो बीजेपी का ओडिशा में चेहरा केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान बताए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस निरंजन पटनायक को आगे करके लड़ेगी। ओडिशा में रैलियां करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी में होड़ मची है। ओडिशा में मोदी अब तक दस रैलियां कर चुके हैं तो राहुल गांधी बीते बीस दिन में तीन रैलियां कर चुके हैं और दो रैलियां होनी हैं, आठ मार्च को कोरापुट के जैपुर में तो दूसरी 13 मार्च को बरगढ़ में। वहीं बीजेडी सुप्रीमो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक चुनाव अधिसूचना से पहले ही 37 दिनों में प्रदेश के 25 जिलों का दौरा कर चुके हैं। वह योजनाएं घोषित करते हैं और क्षेत्र की जनता को संबोधित करते हैं। परस्पर विरोधी दलों में नेताओं और कार्यकर्ताओं की आवाजाही जारी है। दलबदल के दौर में फायदे में बीजू जनता दल है। बीस साल से सत्ता में होने का उसे लाभ मिल रहा है। केंद्र के वरिष्ठ मंत्रियों और बीजेपी संगठन के नेताओं की आवाजाही ने गति पकड़ी है। मोदी की रैली वाले दिन दिल्ली से एक न एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रेसमीट करके केंद्र सरकार और बीजेपी पर तथ्यों के साथ बयानी हमले करके चल देते हैं। मीडिया में दोनों को तरजीह मिल जाती है।
बीजेडी और भाजपा तो क्रमशः राज्य व केंद्र में सरकार होने के कारण कार्यक्रमों और विकास के वादों के साथ ही संगठन के स्तर पर भी तैयारी में जुटी है। हालांकि राज्य में दूसरे नंबर पर विपक्षी दल कांग्रेस है पर नेता संगठन में नई जान फूंकने में मशगूल है। ओडिशा विधानसभा की 147 और लोकसभा की 21 सीटों पर चुनाव होना है। पिछला चुनाव (2014) बीजू जनता दल के लिए हौसला बुलंद करने वाला रहा। विस की 147 में से 117 तथा लोकसभा की 21 में से 20 सीट जीतकर पार्टी ने दमखम दिखा दिया। इसमें 43.9 प्रतिशत वोट बीजेडी ने हासिल किया। हालांकि जीत के हैंगओवर का खामियाजा जिला परिषद चुनाव बीजेडी को भारी नुकसान से भुगतना पड़ा। कांग्रेस भी घाटे में रही। फायदे में बीजेपी रही। इस चुनाव में भाजपा 36 सीटों से बढ़कर 297 तक जा पहुंची और बीजद 651 से घटकर 473 सीटों पर आ गई। कांग्रेस 128 से घटकर 60 पर जा टिकी। बाकी 38 से सिमटकर 16 पर आ गए। इस जीत से भाजपा उत्साह से इतना लबरेज हो गई कि 15 अप्रैल 2017 को नेशनल एक्जीक्युटिव की बैठक भुवनेश्वर में बुला ली गई।
बीजेपी ने भी विकास का कार्ड खेला। भुवनेश्वर को पूर्वी भारत और पूर्वोत्तर राज्यों के विकास का गेटवे घोषित कर दिया। मोदी और शाह दस-दस बार ओडिशा आ चुके हैं। इस झटके से घबराए नवीन ने पार्टी से दागी नेताओं को किनारे लगाना शुरू कर दिया। वरिष्ठ मंत्री दामोदर राउत की छुट्टी कर दी गई। पटनायक जिलास्तर पर संगठन की मॉनीटरिंग करने के साथ ही विधायकों का रिपोर्ट कार्ड खुद देख रहे हैं। करीब छह सीटें ऐसी हैं जो बीजद दो हजार वोटों के भीतर हारा है। नवीन ने चुनावी रणनीति के तहत युवाओं को जोड़ने में कामयाब होते दिख रहे हैं। वरिष्ठ नेताओं को जिला प्रभारी बना दिया है। पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्र कहते हैं कि कौन कहां से लड़ेगा यह लगभग तय किया जा चुका है।
बीजद में अबकी छह सांसदों और 40 के करीब विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं। जिला परिषद के चुनाव में शिकस्त के बाद पार्टी में सांगठनिक परिवर्तन, जनता से मिलने जुलने और साफ छवि के कारण लोकप्रियता बढ़ी है। दरअसर 2014 से लेकर 2017 तक बीजद थोड़ी सुस्त चाल में रही। इस दौरान भाजपा और कांग्रेस चिटफंड घोटाला, बढ़ती किसान आत्महत्या की घटनाएं व रेप की बढ़ती घटनाओं ने विपक्ष को हमला करने का मौका दिया। सदन तक नहीं चलने दिया। सरकार विपक्ष के हर हमले से बखूबी निपटते हुए दिखी।
सूत्र कहते हैं कि ग्राम पंचायत स्तर तक कार्यकर्ताओं का नेटवर्क बीजद का तैयार है। सारा डेटा कंप्यूटर में फीड है। विधानसभा और लोकसभा सीट पर कौन लड़ेगा, किस जनप्रतिनिधि की क्या परफॉरमेंस है, इसका भी लेखाजोखा सिर्फ एक क्लिक मारते कंप्यूटर की स्क्रीन पर आ जाता है। संगठन विस्तार की रणनीति के साथ ही नवीन ने जानेमाने मीडिया घराने के मालिक सौम्यरंजन पटनाक और कीस में 25 हजार आदिवासी बच्चों को केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा देने वाले तथा मीडिया ग्रुप के मालिक डा.अच्युत सामंत तथा रुपहले परदे से राजनीति में एंट्री मारने वाले प्रशांत नंदा को बीजद से राज्यसभा में भेजा। यही नहीं मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त आरुप पटनायक, एआईआर के डीजीपी रहे गिरधारी महंति को बीजेडी में शामिल किया।
नवीन बाबू ने एक बड़ी एजेंसी से सीटवार सर्वेक्षण भी कराया है। सूत्रों के अनुसार जिसकी रिपोर्ट के अनुसार 56 विस सीटें ऐसी चयनित की गई हैं जहां पर प्रत्याशी बदलने की सिफारिश की गई है। इसके जवाब में बीजेडी की रीढ़ रहे केंद्रपाड़ा के पूर्व सांसद बैजयंत पांडा को बीजेपी ने सदस्यता दे दी। कांग्रेस भी हाथपांव मार रही है। इसके बाद भी बीजेडी को एंटी इंकम्बैंसी और भ्रष्टाचार का भूत सता रहा है।
उधर भाजपा का नारा आमा बूथ सबुथू मजबूत कारगर होता नहीं दिख रहा है। यह शाह का एक्शन प्लान है। बड़े नेताओं का बूथ प्रवास योजना को भाजपा की गुटबाजी ने पलीता लगा दिया है। केंद्रीय नेतृत्व ने ओडिशा पर विशेष ध्यान दिया है। यह पर यदि 2019 के चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक न रहा तो सबसे ज्यादा किरकिरी अमित शाह की होगी। उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। प्रदेश संगठन मंत्री शारदा सत्पथी को हटाकर मानसरंजन महंति को लाया जाना आरएसएस के हस्तक्षेप का सीधा संकेत है।
विधानसभा चुनाव
पार्टी | 2004 | 2009 | 2014 |
बीजद | 61 | 103 | 117 |
कांग्रेस | 38 | 27 | 16 |
भाजपा | 32 | 06 | 10 |
अन्य | 16 | 11 | 04 |
बीजद | 27.4 | 38.9 | 43.9 |
कांग्रेस | 34.8 | 29.0 | 26.0 |
भाजपा | 17.1 | 15.1 | 18.2 |
अन्य | 20.7 | 17.0 | 11.9 |
2004 | 2009 | 2014 | |
बीजद | 11 | 14 | 20 |
कांग्रेस | 02 | 06 | 00 |
भाजपा | 07 | 00 | 01 |
जेएमएम | 01 | – | – |
सीपीआई | 01 | – | – |
बीजद | 30.0 | 37.23 | 44.1 |
कांग्रेस | 40.4 | 32.7 | 26 |
भाजपा | 19.3 | 16.89 | 21.5 |
जेएमएम | 1.5 | – | – |
सीपीआई | 6.6 | – | – |
दल सीटें | वोट% | नफा/नुकसान% | नफा/नुकसान (सीटों पर) | |
बीजद | 473 | 40.4 | (-) 3% | (-)178 |
कांग्रेस | 60 | 17 | (+) 15% | (-)67 |
भाजपा | 297 | 33 | (-)8.7% | (+)261 |