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ओडिशा का जलियावाला बाग कांडः 79 साल बाद शहीद स्थल पर्यटन स्थल की तरह विकसित होना शुरू

यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश में इन शहीदों को याद भी किया गया तो आजादी के 72 साल बाद…

भुवनेश्वरAug 14, 2018 / 09:26 pm

Prateek

photos of Amasimko

(पत्रिका ब्यूरो,भुवनेश्वर): केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री जुएल ओरम के प्रयास से शहीद स्थल आमसिमको को 79 साल बाद पर्यटनस्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। सुंदरगढ़ जिले के जमीन के टैक्स के विरुद्ध खुंटकटी आंदोलन चलाने वाले 39 आदिवासियों को अंग्रेजों ने गोली से उड़ा दिया था। अनाधिकारिक तौर पर यह संख्या 50 बताई जाती है। बीरमित्रपुर में आमकोसिमको नामक स्थल को पर्यटन स्थल की शक्ल देने को आदिवासी कल्याण मंत्रालय चार करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। आमको सिमको की धरती 23 अप्रैल 1939 को आदिवासियों के लहू से लाल हो गई थी।


यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश में इन शहीदों को याद भी किया गया तो आजादी के 72 साल बाद। अंग्रेजों के विरुद्ध इस विद्रोह की कहानी कुछ यूं थी कि आदिवासियों का नेतृत्व करने वाले निर्मल मुंडा ने 36 गांवों को टैक्स मुक्त रखने की मांग की थी। फिरंगियों ने मुंडा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई। डाहीजीरा के मानसिद गुडिया, टिकली पाडा़ के एलियाजर मुंडा, झरियाडीपा के तिंतुष गुडिया, बोंडाकाटा के दानियल मुंडा समेद अन्य लोगों को कमेटी में शामिल
किया गया था।

 

लखराजी व खुंटकटी का अधिकार के लिए छोटानागपवुर टेनेंसी एक्ट के तहत मिले अधिकारों को बहाल करने, जंगल जमीन पर रैयतों का अधिकार देने समेत अन्य मांगें वायसराय को भेजे गए थे। 23 अप्रैल 1939 को इस पर रानी जानकी रत्ना फैसला सुनाने वाली थी और लोग फैसला सुनने आएं, इसके लिए 36 मौजों में ढोल पीटा गया था। फैसला सुनने के लिए लोग आमको सिमको में जमा हुए थे। गांगपुर की रानी जानकी रत्ना के पोलिटीकल एजेंट ले. ईडब्ल्यूएम मर्गर एवं कैप्टन विस्को भी यहां पहुंचे थे। फैसला सुनाने के बजाय पुलिस ने निर्मल मुंडा की तलाश शुरू कर दी। निर्मल मुंडा के घर में घुसने के दौरान उनकी टोपी गिर गई। उन्होंने अफसरों को गोलीबारी के आदेश दे दिए। इस आंदोलन में 39 लोग शहीद हुए एवं 80 से अधिक लोगों को गोली लगी थी। गोलीकांड में शहीद व घायलों को अब तक स्वाधीनता सेनानी की मान्यता नहीं मिली। 15 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शहीदों को सम्मान देते हुए उनके परिजनों को ताम्रपत्र प्रदान किया पर सरकार इसे स्वाधीनता संग्राम नहीं बल्कि एक कृषक आंदोलन बता रही है।

 

आमकोसिमको नरसंहार कांड को ओडिशा का जलियावाला बाग कांड कहा जाता है। जलियावाला बाग जैसी ब्रिटिश हुकूमत के जुल्म की यह दूसरी बड़ी घटना थी, आदिवासियों के क्षेत्र में होने के कारण चाटुकार इतिहासकारों ने इसे इतिहास के पन्नों में स्थान देने लायक न समझा। ओडिशा गजेटियर ने इस पूरी घटना को एक किसान विद्रोह करार दिया। यही कारण रहा कि आमको-सिमको जैसा एक विद्रोह समय की गर्त में कहीं खो चुका है। सुंदरगढ़ से जितने भी आदिवासी नेता निर्वाचित होकर सदन में पहुंचे वो सिर्फ भाषणबाजी तक ही सीमित रहे। सन 1996 में यहां से लोकसभा पहुंचे फ्रीदे तोलना ने आमको-सिमको का मुद्दा सदन में उठाया पर कामयाब नहीं हुए। निर्मल मुंडा के वंशज साईंहुन डांग और विनती डांग का कहना है कि उन्होंने आमकोसिमको में पांच एकड़ जमीन भी दान में दे दी है ताकि स्मारक बन जाए। केंद्रीय जनजाति कल्याण जुएक ओरम कहते हैं कि ओडिशा विधान सभा इस आशय का प्रस्ताव केंद्र सरकार को अग्रसारित करे तो यह काम हो सकता है। उनका कहना है कि चार करोड़़ मंजूर किए गए हैं।

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