सटीक लेखा जोखा नहीं
महानदी को लेकर ओडिशा और छत्तीसगढ़ (तब मध्यप्रदेश) सरकार के बीच करीब 33 वर्ष पुरानी लड़ाई है। दिलचस्प तो यह कि छत्तीसगढ़ के बांधों से ओडि़शा के हीराकुद बांध के लिए कितना पानी छोड़ा जा रहा है, इसका सटीक लेखा जोखा दोनों राज्यों की सरकार के पास नहीं है। महानदी पर आंदोलन चलाने वाले रंजन पंडा कहते हैं कि दोनों ही राज्य महानदी पर राजनीति कर रहे हैं। जनहित के इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर दिया गया है। यह अब चुनावी मुद्दा बन चुका है।
महानदी के अस्तित्व की लड़ाई
उधर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने जल विवाद को महानदी के अस्तित्व की लड़ाई से जोड़ दिया है। महानदी सुरक्षा अभियान की सभा में वह बराबर बोलते रहे कि यह विवाद अब जल का नहीं है, यह तो अब महानदी के अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है। लेकिन आधे से ज्यादा पानी समुद्र में मिल रहा है भाजपा के इस आरोप और अपनी ही सरकार के जल संसाधन विभाग की इस पर रिपोर्ट पर बीजद की साफगोई अब तक सामने नहीं आ सकी। राज्य सरकार के जल संसाधन मंत्री निरंजन पुजारी ने विधानसभा में बयान देते हुए कहा था कि राज्य में बहने वाली नदियों का 53 प्रतिशत पानी सीधे समुद्र में गिरता है। बड़ी नदियों का 50,686 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी हर साल समुद्र गिरकर बरबाद हो जाता है।
छह बांध बाधक
ओडिशा सरकार के प्रवक्ता मंत्री एसएन पात्र का कहना है कि हीराकुद बांध से अपस्ट्रीम पर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बनवाए गए छह बांध महानदी को ओडिशा पहुंचने से रोक लेते हैं। रमन सरकार केंद्रीय जल आयोग से क्लियरेंस लेना तो दूर पड़ोसी राज्य तक को बताने की जहमत नहीं उठाती। महानदी के पानी पर छत्तीसगढ़ की मनमानी पर केंद्र सकार की अनदेखी से साफ है कि भाजपा और उसकी सरकारों का ओडिशा में जलसंकट और महानदी के अस्तित्व से कोई सरोकार नहीं है। केद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान रमन सिंह के बयान की निंदा तो करते हैं पर अपस्ट्रीम पर बेरोकटोक बन रहे बांधों का निर्माण रुकवाने पर खामोश रहते हैं।