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खासकर ऐसे मौके पर जब केंद्र में मोदी सरकार और ओडिशा में नवीन पटनायक सरकार गलबहियां वाली राजनीति के दौर में हैं। विभिन्न विधेयकों की राज्यसभा में मंजूरी में बीजेडी के सांसदों का खुला समर्थन मोदी सरकार को मिलता रहा है। विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल होने के बाद भी कांग्रेस मुख्य विपक्षी भूमिका के रूप में प्रस्तुत करने में सफल रही। जबकि नेता विपक्ष बीजेपी का है। समीर महंति जमीनी नेता हैं। उनके सामने कुछ चुनौतियां हैं तो कुछ उनकी खासियत भी है जो संगठन चलाने में मददगार होंगी।
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महंति की चुनौतियों पर दृष्टिपात करें तो बूथ स्तर पर संगठन की मजबूती, जिला इकाइयों के अध्यक्षों व अन्य पदाधिकारियों के साथ तालमेल बैठाना, बीते 16 सालों से अब तक हुए पश्चिमी ओडिशा के दिग्गज प्रदेश अध्यक्षों से विशेष सहयोग लेकर संगठन चलाना, तटीय जिलों में बीजेपी को मजबूती देना भी चुनौती है। यहां पर बीजेपी कमजोर रही है, बीजेपी के भीतर खाने में वर्चस्व और पहुंच में उलझे नेताओं के बीच निष्पक्ष और निर्गुट रहना भी चुनौती बतायी जा रही है, गुटबाजी की वैतरणी पार करते हुए सांगठनिक मजबूती देना महत्वपूर्ण कार्य होगा, नवीन सरकार की नीतियों रीतियों के विरोध में जनता के बीच जाकर विश्वास जीतना।
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वहीं समीर की कुछ खासियत भी है जैसे साधारण व्यक्तित्व होने के नाते जनता और कार्यकर्ताओं की उन तक पहुंच आसान है, केंद्र में स्थापित ओडिशा के असरदार नेताओं का उन पर हाथ होने के कारण संगठन चलाने में कठिनाई नहीं आएंगी, हालांकि उन्हें कद्दावर नेता नहीं माना जाता है पर उनकी कार्यशैली दिग्गजों को संतुष्ट कर लेगी ऐसा बीजेपी के ही लोग मानते हैं, राज्य स्तर के पदाधिकारियों और प्रवक्ताओं के चयन में उनके सामने कठिनाई नहीं आएगी, संगठन चलाने के लिए फंडिंग उनके लिए कोई समस्या ही नहीं है, सरकारी नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक राजनीति करने के कारण वह ज्यादा से ज्यादा समय आफिस और कार्यकर्ताओं तथा जनता के बीच दे सकेंगे, उनकी सादगी और व्यवहार कुशल होने के कारण पश्चिमी ओडिशा जहां से ज्यादा जनप्रतिनिधि आते हैं, उन्हें संतुष्ट रखने में मुश्किलें कम होंगी।