गौरतलब है कि चिकित्सा के प्रति जागरूकता के अभाव में राज्य के आदिवासी आबादी बहुल जिले नवरंगपुर, क्योंझर, कोरापुट, कटक, अनगुल, सुंदरगढ़ आदि जिलों के सुदूरवर्ती गांवों में लोहे की गरम छड़ से बच्चों के सिर, कंधे, पेट, पीठ में दागा जाता है। छड़ के त्वचा में स्पर्श होते ही बच्चे बिलबिला उठते हैं। माता-पिता सोचते हैं कि उनका बच्चा ठीक हो जाएगा। कभी-कभी तो जान के भी लाले पड़ जाते हैं। नवरंगपुर जिले में जिन 23 बच्चों को गरम सरिया से दागा गया है, उनमें सात माह का बच्चा भी शामिल है। इनमें से लगभग सभी को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। अंधविश्वासियों का कहना है कि सरिया से दागने से जिंदगी भर बच्चे बीमार नहीं होते।
जानकारी के मुताबिक इन बच्चों के माता-पिता का विश्वास है कि पारंपरिक तरीके से सरिया से दागा जाना शुभ होता है। शनिवार का दिन आदिवासियों की नजर में उपयुक्त माना गया है। इसे चितलागी आमवस्या कहा जाता है। सरिया से दागने की घटना का पता लगते ही ब्लाक के सामुदायिक स्वास्थ केंद्र से चिकित्सा टीम आंगनबाड़ी और आशाबहुओं के साथ गांवों को रवाना हुई। प्राथमिक उपचार के बाद मलहम आदि देकर बच्चों को घरों को जाने दिया गया। ज्यादातर बच्चों को पेट में सरिया से दागा गया था। एक रिपोर्ट के अनुसार 43 सौ इस तरह के लोग जिले में है जो सरिया से दागकर बीमारी ठीक करने का दावा करते हैं। बीते साल नवरंगपुर जिला प्रशासन ने सरिया से दागने की अंधविश्वासी परंपरा के विरुद्ध ज्योति अभियान चलाया था। यह अभियान थोड़े दिन बाद बंद हो गया था।