यह एक ऐसा मौका है जब भक्तों की जान बचाने के लिए उन्हें भगवान से दूर रखा जा रहा हैं। लेकिन हर साल में 14 दिन जगन्नाथ महाप्रभु भक्तों की रक्षा के लिए उनसे दूर रहते हैं। दरअसल जगन्नाथ महाप्रभु की लीला जगत से न्यारी है। उनकी रीति नीति भी सबसे अलग है। महाप्रभु जीवंत रूप में पुजे जाते हैं। वे इंसानों की तरह बीमार भी होते हैं और उनका इलाज भी किया जाता है। विश्वप्रसिद्ध पुरी रथयात्रा से पहले ज्येष्ठ माह की स्नान पूर्णिमा को उन्हें बुखार आ जाता है। अमावस्या तक 14 दिन उनकी सेवा एक शिशु के रूप में की जाती है। इस दौरान जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान महाप्रभु भक्तों के हर कष्ट को अपने ऊपर लेते हैं। इस बार स्नान पूर्णिमा 5 जून को है और 23 जून से रथ यात्रा शुरू होने जा रही है।
आज कोरोना वायरस के चलते मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बंद किया जा रहा है। इस तरह साल में दो बाद महाप्रभु भक्तों से और भक्तों को उनसे दूर रहना होगा। आज की दशा में अपनी रक्षा के लिए महाप्रभु से दूर रहकर भक्तों को समपर्ण करना पड़ेगा तो इसके बाद 14 दिन भक्तों की रक्षा के लिए महाप्रभु खुद उनसे दूर रहेंगे। श्रद्धा और विश्वास का अनूठा नजारा भारतीय संस्कृति में ही देखने को मिल सकता है।