भुवनेश्वर

रफेल के कारण ओडिशा स्थित एचएएल का एफजीएफए प्रोजेक्ट का उत्साह ठंडा

फ्रांस से रफेल खरीदने के फैसले से ओडिशा के सूनाबेड़ा (कोरापुट) स्थित एचएएल (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड), जहां पर सुखोई और मिग के इंजनों का काम होता है, को मिलने वाला रूस का फिफ्थ जनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट (एफजीएफए) प्रोजेक्ट खटाई में पड़ गया

भुवनेश्वरJul 26, 2018 / 05:42 pm

Shailesh pandey

(महेश शर्मा की रिपोर्ट)
भुवनेश्वर। फ्रांस से रफेल खरीदने के फैसले से ओडिशा के सूनाबेड़ा (कोरापुट) स्थित एचएएल (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड), जहां पर सुखोई और मिग के इंजनों का काम होता है, को मिलने वाला रूस का फिफ्थ जनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट (एफजीएफए) प्रोजेक्ट खटाई में पड़ गया। बताया जाता है की अब यहां अन्य विकल्पों पर काम होगा। मिग लड़ाकू विमान 2025 तक फेजआउट किया जाना था, उसके बाद एफजीएफए विमान का बड़ा प्रोजेक्ट सूनाबेड़ा एचएएल को मिलना था। इसकी पूरी तैयारी की जा रही थी। विमान के साथ ही रूस टेक्नोलॉजी भी हस्तांतरण करने वाला था। इसके लिए इंएयरोनॉटिकलजीनियरों की एक टोली ट्रेनिंग के लिए रूस भेज भी दी गयी थी। मगर इसी बीच फ़्रांस के राफेल विमान की खरीद के फैसले के बाद एयरोनॉटिकल इंजीनियरों की टोली को वापस भारत बुला लिया गया है।
 

एलसीए को उच्चस्तर तकनीक का बनाये जाने पर काम करेंगे


एक अधिकारी ने बताया कि एचएएल में अब सुखोई के साथ ही मिग सिरीज के सिर्फ मिग-29 पर हम लोग ध्यान केंद्रित करेंगे। उनका कहना है कि एफजीएफए पर बात नहीं बनती है तो एलसीए (हल्का लड़ाकू विमान) को उच्चस्तर तकनीक वाला बनाये जाने पर काम किया जाएगा। जिस प्रकार सुखोई में मिसाइल लोड करके हवा से हवा में मार करने की तकनीक ईजाद की गयी है उसी तरह एलसीए में भी यही व्यवस्था किए जाने के प्रस्ताव पर एचएएल के मुख्यालय पर काम चल रहा है। सुखोई और मिग सिरीज के विमानों के इंजन की रिपेयरिंग और ओवरहॉलिंग के लिए भी ओडिशा स्थित एचएएल जाना जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने फरवरी के अंत में एक बैठक में चर्चा के दौरान रूसी मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के फैसले की जानकारी दी कि पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान को रूस अकेले ही विकसित करना चाहता है।
 

रूस के साथ सौदा बहुत ही महंगा

 

सूत्रों के मुताबिक भारतीय वायुसेना को लग रहा है कि रूस के साथ यह सौदा बहुत ही महंगा है, क्योंकि चार प्रोटोटाइप लड़ाकू विमानों पर करीब छह अरब डॉलर की लागत आएगी। हालांकि अक्टूबर 2017 में एचएएल के अध्यक्ष टी. सुवर्ण राजू ने भारत और रूस के एफजीएफए कार्यक्रम का समर्थन किया था। उनका कहना था कि इससे स्वदेशी तकनीक विकसित करने का मौका मिलेगा। उल्लेखनीय है कि भारत और रूस 2007 से एफजीएफए पर चर्चा कर रहे हैं। जब भारत और रूस इस समझौते पर सहमत हुए थे तब तक एचएएल और रूस के सुखोई डिजाइन ब्यूरो (सुखोई) में इस पर साथ काम करने की बात हुई थी। रूस के साथ वार्ता में प्रत्यक्ष भूमिका निभाने वाले रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि 127 एफजीएफए के निर्माण के लिए भारतीय उत्पादन सुविधाओं के लिए यह पैसा बहुत अधिक था। इसीलिये बताते हैं कि अब भारतीय वायुसेना एफजीएफए से पीछे हट गई है।
 

हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और रशियन सुखोई डिजाइन ब्यूरो के बीच करार

 

यूपीए के रक्षा मंत्री एके एंटनी ने अमेरिकी एफ-35 लाइटनिंग खरीदने से इंकार कर दिया था और तर्क दिया था कि भारत पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू जरूरतों को पूरा करने के लिए एफजीएफए क्रय करेगा जबकि भारतीय एयरोस्पेस डिजाइनर ने स्वदेशी पांचवीं पीढ़ी के उन्नत लड़ाकू विमान (एएमसीए) को विकसित करने के लिए एफजीएफए को महत्व दिया था। यह कहा गया कि रूसी विशेषज्ञों के साथ काम करने से प्राप्त तकनीकी विशेषज्ञता एएमसीए परियोजना को लाभान्वित करेगी। फजीएफए के लिए हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और रशियन सुखोई डिजाइन ब्यूरो के बीच एक करार हुआ था। इसके तहत इन विमानों को दोनों देशों के इस्तेमाल के लिए बनाया जाना था, लेकिन इस बारे में अंतिम शोध एवं विकास करार वर्ष 2012 तक हो जाना था, लेकिन वह अब तक नहीं हुआ। एफजीएफए को स्टेल्थ लड़ाकू विमान भी कहा जा रहा है।स्टेल्थ विमान चुपके से वार करने में माहिर होता है।
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