50 लाख किसान हमारी ताकत हैं
इस संगठन से पश्चिम ओडिशा के 50 लाख से अधिक किसान जुड़े हुए हैं। नेताओं और कार्यकर्ताओं को नोटा (इनमें से कोई नहीं) चुनने के लिए कहा गया है। बीजेपी, कांग्रेस या बीजेडी को चुनने के बजाय किसान नोटा का बटन दबाकर अपने गुस्से का इजहार करेंगे। उन्हें प्रचार और नोटा का उपयोग के लिए संगठित किया जा रहा है।
प्रमुख मांगें
पूरा कर्ज माफी, स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू करना, राज्यस्तर पर कृषि उत्पादों पर बोनस, वाजिब एमएसपी दर जैसी बुनियादी समस्याओं की तरफ से ध्यान हटाया जा रहा है। स्वामीनाथन कमीशन 2004 में गठित किया गया था तब कांग्रेस की सरकार थी। कमीशन ने 2006 को रिपोर्ट सौंपी थी। तब से अब तक क्या हुआ? इसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार एक दो नहीं पूरे आठ साल तक सत्ता में रही।
नोटा के पक्ष में अभियान
पोलिटिकल पार्टियां प्रचार करने गांवों में पहुंचेंगी तो किसानों का संगठन नोटा का प्रचार अभियान चलाएगा। यह जारी रहेगा। इसे 2019 के चुनाव के लिए सीमित नहीं रखा गया है। यह शुरुआत है। अगले चुनाव में भी किसानों का यही स्टैंड रहेगा। मांगे जब तक न मानी जाएं। 2014 के चुनाव में भी किसानों को छला गया। प्राइस, प्रेस्टिज और पेंशन की मांग करने वाला किसान संगठन राजनेताओं के हाथों खेल रहा है। यह संगठन राजनीतिक नहीं है। लिंगराज चुनाव लड़े थे तो इस संगठन ने उन्हें समर्थन नहीं दिया था। पीओकेएसएसएस की नीयत साफ है। बीजेडी सरकार की कालिया, पीएम किसान सम्मान निधि योजना तो किसानों की मुख्य मांगों को दबाने के लिए हैं। किसानों की नाराजगी का कारण उनकी दुर्दशा है जिसपर किसी का ध्यान नहीं है।
किसान आय आयोग गठित हो
मांगों की एक सूची तैयार की गयी है। उदाहरण के तौर पर खेती को क्यों अनस्किल्ड माना जाता है क्यों, किसान आय आयोग गठित किया जाए जिसकी रिपोर्ट लागू की जाए और इसमें किसानों का भी प्रतिनिधित्व हो। किसान आत्महत्याओं को सरकार संज्ञान में ले। महानदी जल विवाद का हल जल्दी से जल्दी हो। ऐसे तमाम सवाल हैं। एक परचा भी जारी किया गया है।