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Odisha: घटे बाघ तो बढ़ गए हाथी, होता रहा संघर्ष नहीं बन पाए साथी

locationभुवनेश्वरPublished: Aug 12, 2019 11:03:39 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

World Elephant Day: ओडिशा में जहां एक तरफ बाघों की संख्या तेजी से घट रही है वहीं, हाथियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। हाथियों की संख्या बढऩे के साथ इनके मानव से संघर्ष के मामले …

Odisha: घटे बाघ तो बढ़ गए हाथी, होता रहा संघर्ष नहीं बन पाए साथी

Odisha: घटे बाघ तो बढ़ गए हाथी, होता रहा संघर्ष नहीं बन पाए साथी

भुवनेश्वर (महेश शर्मा). ओडिशा में जहां एक तरफ बाघों की संख्या तेजी से घट रही है वहीं, हाथियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। हाथियों की संख्या बढऩे के साथ इनके मानव से संघर्ष के मामले भी बढ़े हैं। बाघों की संख्या जहां बीते दस साल में 45 से घटकर 27 रह गई हैं वहीं, बीते पांच साल में हाथियों की संख्या बढ़ कर 1976 हो गई है। इनमें 344 नर और 1092 मादा हाथी हैं। 39 हाथियों का पता नहीं चल पाया कि वे नह हैं या मादा। 502 युवा हाथी हैं। सन 2017 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 27312 हाथी हैं। 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस है। यह 2011 से हर साल मनाया जाता है। ओडिशा में ग्रामीण इलाकों और हाथियों के बीच अक्सर मुकाबला होता ही रहता है। झारखंड से घुसकर ओडिशा आने वाले हाथियों ने बालासोर और मयूरभंज में दहशत फैला रखी है तो कटक का अटगढ़ भी हाथियों के कारण दहशतजदा रहता है। गत माह करीब 40 हाथियो के झुंड ने बालासोर के नीलगिरि ब्लाक के तिनकोसिया वन क्षेत्र मे प्रवेश करके सीमावर्ती गांवों को तबाह कर दिया। फसलों को भारी नुकसान हुआ है।

हाथियों के भी मारे जाने की घटनाएं प्रकाश में आती रही हैं। मयूरभंज के सिमलीपाल टाइगर रिजर्व में 2010 में 14 हाथियों की मौत के रहस्य पर से परदा आज तक नहीं उठ सका। पहले भी मयूरभंज के एक गांव में झारखंड सीमा को पार कर करीब 70 हाथियों का दल ओडिशा में घुस आया था। वन विभाग के अफसर और कर्मी हाथियों को गांवों की तरफ आने से रोक नहीं पा रहे है। वन से आबादी वाले इलाकों की तरफ हाथियों के झुंड का घुसना कैसे रोका जाए यह बड़ा सवाल है। हांका लगाने के साथ ही गांव वाले देर शाम झाडिय़ों मे आग लगाकर हाथियों को भगाते हैं। कुलदिहा जंगल की ओर हाथियों का झुंड विचरण कहता रहता है।

ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम और ट्रेकिंग टीम हाथियों के झुंड पर नजर रखे है। बताते हैं कि ये खानापानी की तलाश भटकते हुए गांवों की ओर आ जाते हैं। बताते हैं कि पिछले दस साल में सिर्फ झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में जंगली हाथी एक हज़ार लोगों को मार चुके हैं. इसी अवधि में सिर्फ झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में एक सौ सत्तर से ज्य़ादा हाथी भी मारे जा चुके हैं। वन्य जीव प्रेमी बताते हैं कि जंगलों और जंगलों के आसपास के इलाके इंसानों और जानवरों की रणभूमि में तब्दील हो चुके हैं। दोनों अपने-अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। वन विभाग के प्रमुख अधिकारी का कहना है कि अतिक्रमण और जंगलों के सिकुडऩे की वजह से हालात और भी गंभीर होते जा रहे हैं।


पुराना है मानव-हाथी संघर्ष

Odisha: घटे बाघ तो बढ़ गए हाथी, होता रहा संघर्ष नहीं बन पाए साथी

ओडिशा में हाथियों और मनुष्यों के बीच संघर्ष भी पुराना है। जंगलों से भागकर गांवों पर हमला करने वाले हाथी कभी भारी पड़ जाते तो कभी गांव वाले। शिकारी भी इनके दांत आदि के चक्कर में घात लगाए बैठे रहते हैं और मौका मिलते ही गिरा लेते हैं। ताज्जुब तो यह कि ये घटना वन विभाग की जानकारी में होती रहती हैं। अप्रेल 2014 से लेकर ५ मार्च 2018 तक के वन विभाग के आंकड़े लें तो ओडिशा में इस दौरान 276 हाथी मारे जा चुके हैं। जबकि मनुष्यों के मारे जाने के आंकड़ें 319 हैं। यानी हाथी भारी पड़ते रहे। घायल मनुष्यों की संख्या 201 हैं। दोनों के बीच इस बीच टकराव 431 बार हुआ है। सबसे ज्यादा हाथी अप्रेल 2015 से मार्च 2016 के बीच 80 मारे गए थे। जबकि 79 मनुष्यों को हाथियों ने रौंदकर मार डाला था। कुल 37 मानव घायल हुए थे। टकराव की 100 घटनाएं हुई थी।

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