इससे पूर्व प्रधान सेवायत गजपति महाराज दिव्य सिंह देव ने सोने के हत्थे वाली झाड़ू से रथ के सामने स्वच्छता के प्रतीक के रूप में झाड़ू लगायी। रथ के द्वार खोलकर रस्से लगाकर रथ को भक्तों ने खींचा। यह यात्रा पर्व नौ दिन का है। लाखों की संख्या में भक्तों ने भाग लिया। रथ यात्रा से पहले 108 जोतों की भगवान की आरती की गयी। रथ के जुए को हाथ लगाने की बोली बोली जाती है। इसमें चार लोग शामिल हुए। यह रकम मंदिर को जाती है। भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा व बलभद्र गुंडिटा मंदिर में मौसी के घर को रवाना हो चुके हैं। साल में एक बार महाप्रभु निकलते हैं। रथ की सजावट खास किस्म के फूलों से की गयी। यूं तो कई स्थानों पर रथयात्रा निकाली जाती है पर पुरी का अलग ही महत्व है।
बता दें कि पुरी के जगन्नाथ महाप्रभु की यह रथ यात्रा विश्व स्तर पर ख्याती प्राप्त है। देश भर से श्रद्धालु इस रथ यात्रा को देखने के लिए पुरी पहुंचते है। रथ यात्रा शुरू होने से एक दिन पहले शुक्रवार को लाखों भक्तों ने श्रीविग्रहों के नवयौवन वेश का दर्शन किया था। और भक्त जन एक दिन पहले ही पुरी में जुटने लगे थे। नौ दिनों तक चलने वाले इस रथयात्रा महोत्सव की तैयारियों में सरकार व प्रशासन लगभग एक महिने से जुटा हुुआ था। अभी भी महोत्सव को सफल बनाने के प्रयास जारी है। रथ यात्रा के दौरान ही क्षेत्रीय कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन कर श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। नृत्यांगनाएं यात्रा पथ पर नृत्य करती नजर आई और कलाकारों ने विभिन्न देवताओं का वेश धारण कर लोगों को दर्शन दिए।