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आंगनबाड़ी के बच्चे शाम को पेट भरने के लिए मांगते है भीख, अधिकारी बेसुध

locationबीजापुरPublished: May 17, 2019 08:39:54 pm

Submitted by:

Deepak Sahu

देवार बस्ती के कुछ बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र जाते है लेकिन नट बस्ती के बच्चे आंगनबाड़ी नहीं जाते। तिल्दा ब्लॉक में परियोजना अधिकारी के कार्यालय के सामने ही बाजार लगता है और कई बच्चे यहां भीख मांग कर अपना पेट भर रहे है।

anganbadi child

आंगनबाड़ी के बच्चे शाम को पेट भरने के लिए मांगते है भीख, अधिकारी बेसुध

रायपुर . मां ने साथ छोड़ा, पिता है लेकिन दिनभर दारू पीता है। दिन में तो आंगनबाड़ी में खाना मिल जाता है लेकिन शाम को पेट भरने के लिए ये मासूम भीख मांगते है। तिल्दा ब्लॉक की देवार और नट जाति के बच्चों का ये हाल कोई नया नहीं है। ये स्थिति बहुत पुरानी है।

देवार बस्ती के कुछ बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र जाते है लेकिन नट बस्ती के बच्चे आंगनबाड़ी नहीं जाते। तिल्दा ब्लॉक में परियोजना अधिकारी के कार्यालय के सामने ही बाजार लगता है और कई बच्चे यहां भीख मांग कर अपना पेट भर रहे है। ये वहीं बच्चे है जो घर से बेसहारा है। इन बच्चों की सुध लेने वाला कोई नहीं। बीते 6 माह से परियोजना अधिकारी इन बच्चों को चिंहित करने में ही लगे हुए है। फाइलों में सारा काम हो रहा है लेकिन जमीनी हकीकत इससे परे है।
किसी ने इन बच्चों की सुध नहीं ली

जिला बाल सरंक्षण अधिकारी की टीम में सामाजिक कार्यकर्ता भी काम करते है कई बार इस क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने परियोजना अधिकारी से लेकर जिला बाल सरंक्षण टीम को जानकारी दी लेकिन किसी ने इन बच्चों की सुध नहीं ली।
अंत में जब मामला विभाग की सचिव एम गीता के पास पहुंचा तो उन्होंने सभी को फटकार लगाई और इन बच्चों को चिंहित करके उन बच्चों को मुख्यधारा में जोडऩे के लिए कहा था लेकिन 8 दिन गुजर गए इस दिशा में कोई भी कार्य नहीं हो रहा है।
भीख मांगकर भर रहे पेट

देवार बस्ती के ये पांच बच्चे दिन में तो आंगनबाड़ी में पेट भर लेते है लेकिन शाम को पेट भरने के लिए भीख मांगकर गुजारा करते है। चाइल्ड लाइन और जिला बाल सरंक्षण की टीम जब यहां पहुंची थी तो ये बच्चे खाना पका रहे थे। इन पांच बच्चों में सबसे बड़ी बच्ची की उम्र 10 साल की है वो अपने भाई-बहन के लिए खाना पका रही थी।
ये सारे भाई-बहन भीख में मिले पैसों से चावल खरीदे और उसे ही पका रहे थे। खाली चावल खाकर ही अपना पेट भरते है। ऐसे यहां पर कई बच्चे है। सभी महिला बाल विकास की जानकारी में होने के बाद भी इन बच्चों के लिए कोई पहल नहीं हो रही है।
आंगनबाड़ी केंद्र में भी देवार जाति के बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है, क्योंकि इन बच्चों के कपड़े गंदे रहते है। वहां कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा इन बच्चों के लिए ड्रेस बनवाई गई। वे सारे बच्चों के लिए ड्रेस बनवाना चाह रहे है जिससे सभी एक ही कपड़े में नजर आएंगे तो भेदभाव नहीं होगा। इस तरह के छोटे-छोटे प्रयासों से ही इन बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है। ये प्रयास महिला बाल विकास को करना होगा।
हम तो 2 माह से इन बच्चों को चिंहित कर रहे है

मैं यहां 3 दिन बैठता है और तीन दिन रायपुर 1 में बैठता हूं। हम बीते 2 माह से इन बच्चों को चिंहित करने में लगे है और कुछ ही दिनों में इन बच्चों की सारी रिपोर्ट तैयार करके देंगे।
-अमित सिन्हा, तिल्दा परियोजना अधिकारी
सभी विभागों के समंवय से होगा काम

हमने वहां की सारी रिपोर्ट तैयार कर ली है। अब जिला स्तरीय समिति की बैठक में हम श्रम, आबकारी, शिक्षा और नगर निगम आदि विभागों से समंवय की मांग रखेंगे, जिससे हम इन बच्चों को भीख मांगने से रोक सकें।
-नवनीत स्वर्णकार, जिला बाल सरंक्षण अधिकारी
तिल्दा और रायपुर 1 का भी प्रभार है उनके पास

तिल्दा परियोजना अधिकारी के पास तिल्दा के साथ ही रायपुर 1 का भी प्रभार है इसलिए वे तीन ही दिन तिल्दा में बैठ पाते है। इन बच्चों के लिए हम प्रयास कर रहे है। सभी को आंगनबाड़ी लाकर शिक्षित करना है।
-अशोक पांडे, जिला कार्यक्रम अधिकारी
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