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जानिये पूरी पृथ्वी दान कर देने वाले परशुराम से जुड़े रोचक किस्से

locationबीजापुरPublished: May 07, 2019 03:22:50 pm

Submitted by:

Deepak Sahu

उन्होंने यज्ञ करने के लिए बत्तीस हाथ वेदी बनवायी थी और वो भी सोने की। बाद में इसी बेदी को महर्षि कश्यप ने ले लिया था। साथ ही परशुराम से पृथ्वी छोड़कर चले जाने के लिए कहा था। परशुराम जी ने उनकी बात मान ली और समुद्र को पीछे हटाकर गिरिश्रेष्ठ महेंद्र पर चले गये।

Parashuram Jayanti

जानिये पूरी पृथ्वी दान कर देने वाले परशुराम से जुड़े रोचक किस्से

बीजापुर भगवान परशुराम किसी समाज विशेष के आदर्श नहीं है। वे संपूर्ण हिन्दू समाज के हैं और वे चिरंजीवी हैं। उन्हें राम के काल में भी देखा गया और कृष्ण के काल में भी। उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था। कहते हैं कि वे कलिकाल के अंत में उपस्थित होंगे। ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे।
परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है। इन्हें जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ‘जामदग्न्य’ भी कहा जाता है। इनके बारे में कई सारे किस्से बहुत प्रसिद्ध है।

पिता के आदेश पर ‘मां’ को मार दिया
भगवान परशुराम अपने पिता के प्रति पूर्ण रुप से समर्पित थे। एक बार उनके पिता उनकी मां से इतने ज्यादा नाराज हो गये कि उन्होंने परशुराम को उसकी हत्या करने का आदेश दिया। परशुराम ने पिता के आदेश का पालन किया और अपनी मां को मार दिया। हालांकि, बाद में अपनी चतुराई से परशुराम अपनी माता का जीवन में लाने में सफल रहे। इस तरह उन्होंने पिता के प्रति अपने समर्पण को प्रमाणित किया।

बछड़े के लिए ‘कार्तवीर्य अर्जुन’ का वध
उस समय के कार्तवीर्य नाम के एक राजा हुए करते थे, जो एक बार किसी युद्ध को जीतने के बाद परशुराम जी के पिता जमदग्नि मुनि के आश्रम में रुक गये थे। बाद में जब वह वहां से निकले तो उन्हें कामधेनु का बछड़ा रास आ गया। राजा बलशाली था इसलिए वह वहां से बछड़े को ले जाने में कामयाब रहा। जब इस बात की जानकारी परशुराम हुई तो उन्होंने राजा कार्तवीर्य का वध कर दिया।

21 बार क्षत्रिय विहीन धरती
कार्तवीर्य अर्जुन के वध का बदला उसके पुत्रों ने जमदग्रि मुनि का वध करके लिया। क्षत्रियों के इस कृत्य को देखकर भगवान परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन के सभी पुत्रों का वध कर दिया। जिन-जिन क्षत्रिय राजाओं ने उनका साथ दिया, परशुराम ने उनका भी वध कर दिया. सिर्फ इतना ही नहीं… माना जाता है कि परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों को मारा था।

ब्राह्मणों को दान कर दी पृथ्वी
महाभारत के अनुसार परशुराम का ये क्रोध देखकर महर्षि ऋचिक ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें इस घोर कर्म से रोका। तब उन्होंने क्षत्रियों का संहार करना बंद कर दिया और सारी पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी और स्वयं महेंद्र पर्वत पर निवास करने लगे।

इस तरह बने राम से परशुराम
बचपन में परशुराम जी को उनके माता-पिता राम कहकर बुलाते थे। बाद में जब वह बड़े हुए तो पिता जमदग्रि ने उन्हें हिमालय जाकर भगवान शिव की आराधना करने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया। उनके तप से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और असुरों के नाश का आदेश दिया। राम ने अपना पराक्रम दिखाया और असुरो का नाश हो गया।

भीष्म, द्रोण और कर्ण को सिखाई थी शस्त्र विद्या
कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम के अवतार के समय परशुराम जी ने मिथिलापुरी पहुंच कर उन्हें वैष्णव धनुष भेंट किया था। यह भी कहा जाता है कि महाभारत के प्रसिद्ध पात्रों भीष्म, द्रोण और कर्ण को भगवान परशुराम जी ने ही शस्त्र विद्या सिखाई थी।

भगवान राम की ले ली थी परीक्षा
परशुराम एक बार अयोध्या गये तो राजा दशरथ ने भगवान राम को उनको लाने के लिए भेजा। चूंकि, परशुराम भगवान राम के पराक्रम की चर्चाएं सुन चुके थे, इसलिए उन्होंने उनकी परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने भगवान राम को दिव्य धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए कहा।

श्री राम के ऐसा कर लेने पर उन्हें धनुष पर एक दिव्य बाण चढ़ाकर दिखाने के लिए कहा। राम ने जब यह भी कर दिया. इसके बाद भगवान राम ने परशुराम को दिव्य दृष्टि दी। जिससे वह श्री राम के असली स्वरूप को देख पाये। कहते हैं जब धनुष पर भगवान राम बाण चढ़ा चुके थे, तब उन्होंने उस बाण से परशुराम जी के तप के अहम् को नष्ट किया था।

त्याग दी थी बत्तीस हाथ ऊंची सोने की वेदी
भगवान परशुराम जी को तो धर्म के लिए भी जाना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में ढ़ेरों यज्ञ किए। यज्ञ करने को लेकर उनकी रुचि तो इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने यज्ञ करने के लिए बत्तीस हाथ वेदी बनवायी थी और वो भी सोने की। बाद में इसी बेदी को महर्षि कश्यप ने ले लिया था। साथ ही परशुराम से पृथ्वी छोड़कर चले जाने के लिए कहा था। परशुराम जी ने उनकी बात मान ली और समुद्र को पीछे हटाकर गिरिश्रेष्ठ महेंद्र पर चले गये।

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