सबसे ऊपरी माले पर भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर है। इसकी खासियत यह है कि पशुनाथ के दर्शन के लिए लिफ्ट लगी हुई है। प्रत्येक मंजिल में राम नाम लिखी कॉपियां (प्रतियां) संग्रहित है। जो विभिन्न राज्यों से आती रहती है, उनको यहां पर सहज कर रखा गया है।
नहीं लगेगी दीमक
यहां संग्रहित राम नाम की प्रतियों को सुरक्षित रखने के लिए गौशाला प्रबंधन की ओर से खास इंतजाम किए गए हैं। इन प्रतियों को दीमक से बचाने के लिए पारे से तैयार विशेष सामग्री का उपयोग किया गया है। बारिश व अन्य प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए स्तंभ को पूरी तरह से कवर किया गया है। देशभर में इस तरह का यह अनूठा स्तम्भ है।
यहां संग्रहित राम नाम की प्रतियों को सुरक्षित रखने के लिए गौशाला प्रबंधन की ओर से खास इंतजाम किए गए हैं। इन प्रतियों को दीमक से बचाने के लिए पारे से तैयार विशेष सामग्री का उपयोग किया गया है। बारिश व अन्य प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए स्तंभ को पूरी तरह से कवर किया गया है। देशभर में इस तरह का यह अनूठा स्तम्भ है।
बताया जाता है कि राम नाम लिखी प्रतियों का स्तंभ हरिद्वार में भी है लेकिन नोखा के इस स्तंभ में खास है, सबसे ऊपर के मंजिल में बना भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर। स्तंभ की अंतिम मंजिल से पूरे नोखा शहर को देखा जा सकता है। आस्थावान श्रद्धालु इसकी परिक्रमा लगाते हैं, मान्यता है कि यह राम नाम की माला जपने के समान है।
105 फीट लंबा है
गंगाशाला में स्थित स्तम्भ जमीन से 105 फीट लंबा और ऊंचा है। इसका निर्माण 4 फरवरी 2006 में जन सहयोग से कराया गया था। इसके निर्माण में लगभग 70 लाख रूपए लागत आई थी।
इसके निर्माण में लोहे और मारबल पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसका निर्माण तीन साल समय लगा। उसके बाद इसकी देखरेख व मंदिर में दर्शन के लिए दानदाताओं के सहयोग से लिफ्ट लगाई गई।
गंगाशाला में स्थित स्तम्भ जमीन से 105 फीट लंबा और ऊंचा है। इसका निर्माण 4 फरवरी 2006 में जन सहयोग से कराया गया था। इसके निर्माण में लगभग 70 लाख रूपए लागत आई थी।
इसके निर्माण में लोहे और मारबल पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसका निर्माण तीन साल समय लगा। उसके बाद इसकी देखरेख व मंदिर में दर्शन के लिए दानदाताओं के सहयोग से लिफ्ट लगाई गई।
इनकी रही प्ररेणा
इसके निर्माण की प्ररेणा संत रामसुख दासजी महाराज से मिली थी। उनकी मुहिम लोगों की श्रद्धा बन गई।राम स्तंभ के निर्माण में आमजन ने आर्थिक सहयोग किया। आस्थावान लोग घर-घर में राम-राम नाम लिखते थे, बीकानेर जिले के अलावा यहां पर अन्य जिलों, प्रदेश के बाहर से भी राम लिखी प्रतियां आती हैं।
इसके निर्माण की प्ररेणा संत रामसुख दासजी महाराज से मिली थी। उनकी मुहिम लोगों की श्रद्धा बन गई।राम स्तंभ के निर्माण में आमजन ने आर्थिक सहयोग किया। आस्थावान लोग घर-घर में राम-राम नाम लिखते थे, बीकानेर जिले के अलावा यहां पर अन्य जिलों, प्रदेश के बाहर से भी राम लिखी प्रतियां आती हैं।
रोजाना आती हैं प्रतियां
श्रीराम स्तम्भ में राम नाम लिखी प्रतियां संग्रहित रहें, इसके लिए आज यहां पर रोजाना राम नाम लिखी प्रतियां आती है। गोशाला प्रबंधन समिति के केशरीचंद गोलछा, मोहनलाल, निर्मल कुमार, रामनारायण शर्मा, हणुताराम बिश्नोई सहित प्रबंधन समिति के सदस्य स्तम्भ में रखी प्रतियों के संरक्षण के लिए सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं।
श्रीराम स्तम्भ में राम नाम लिखी प्रतियां संग्रहित रहें, इसके लिए आज यहां पर रोजाना राम नाम लिखी प्रतियां आती है। गोशाला प्रबंधन समिति के केशरीचंद गोलछा, मोहनलाल, निर्मल कुमार, रामनारायण शर्मा, हणुताराम बिश्नोई सहित प्रबंधन समिति के सदस्य स्तम्भ में रखी प्रतियों के संरक्षण के लिए सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं।