प्रस्तुति देने आए जलोटा ने आचार्य तुलसी की रचनाआंे को अपनी चिरपरिचित गायन शैली में सुनाकर समां बांध दिया। जलोटा ने ‘क्रोध ना छोड़ा तूने झूठ नहीं छोड़ा, सत्य वचन क्यों छोड़ दिया…,चदरिया झीनी रे झीनी…सहित प्रसिद्ध भजन सुनाए तो श्रोताओं ने भी तालियां बजाकर हौसला अफजाई की। जलोटा ने शास्त्रीय व सुगम संगीत पर आधारित भक्ति रचनाओं से देर रात तक श्रोताओं को बांधे रखा।
अनूप जलोटा के साथ मनाली चतुर्वेदी ने सह गायन, तबले पर अमित चौबे, वायलियन पर रसीद खान व संतुर पर रोहन कृष्ण ने संगत की। इससे पूर्व स्थानीय कलाकार राजनारायण व संजय पुरोहित ने आचार्य तुलसी पर रचित रचना की प्रस्तुति दी।
ये रहे मौजूद कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं। इस दौरान बीकाजी के शिवरतन अग्रवाल, सुमेरमल दफ्तरी, विजय कुमार कोचर, विनोद बाफना, जयचंद लाल, सीमा जैन, विमला चोरडिया, पिन्टू नाहटा सहित बड़ी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद रहे।
जीवन पर डाला प्रकाश कार्यक्रम में आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष लूणकनसर छाजेड़ ने तुलसी के जीवन पर प्रकाश डाला। अमरचंद सोनी ने अनपू जलोटा का परिचय दिया। बीकानेर, भीनारसर, गंगानगर की तेरापंथ सभा, किशोर मंडल, महिला मंडल के सदस्यों ने जलोटा का अभिनंदन किया। विमल चौपड़ा व जेठमल बोथरा ने कलाकार को स्मृति चिह्न भेंट किया।
उर्दू में भी सुन सकेंगे भागवत गीता बीकानेर. पांच दशक से लोगों के दिलों मंे भक्ति संगीत की लौ जगाने वाले गायक पद्मश्री अनूप जलोटा की आवाज में भागवत गीता जल्द ही उर्दू में सुनने को मिलेगी। बुधवार को बीकानेर आए अनूप जलोटा ने पत्रकारों से कहा कि भागवत गीता के सात सौ श्लोकों को उन्होंने उर्दू के १५०० शेरों के रूप में रिकार्ड किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इसको काफी पसंद किया है। वे जल्द ही इस एल्बम को मोदी के हाथों ही लॉन्च कराना चाहते हैं।
भजनों की प्रस्तुति देने बीकानेर आए जलोटा ने कहा कि वे बिग बॉस के घर में छुट्टियां मनाने गए थे। इस बीच उनका नाम उनकी शिष्या जसलीन के साथ जोड़कर कई तरह की बातें उठी थी, लेकिन जब जसलीन घर से बाहर आई तो साफ हो गया कि उनके बीच कुछ नहीं था। बाद में जसलीन के पिता व जलोटा ने मिलकर कन्यादान करने की घोषणा की। जल्द ही इसको पूरा किया जाएगा।
पचास साल बाद दूसरी बार आए बीकानेर जलोटा ने कहा कि भजन में यदि मौलिकता और थोड़ा शास्त्रीय संगीत का पुट है, तो निश्चित तौर पर वह भजन लंबे समय तक गाया, सुना और याद रखा जाएगा। इसी कारण चार दशक पूर्व गाए और तैयार किए गए ‘एेसी लागी लगनÓ, ‘मैं नहीं माखन खायोÓ सरीखे भजन आज भी खूब पसंद किए जा रहे हैं। जलोटा ने बताया कि वे जब १६ साल के थे, तब पहली बार बीकानेर आए थे। इसे करीब 50 साल हो गए। उस समय और अब के शहर में बदलाव आ गया है। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी से वे लाडनूं में मिले थे। उसके बाद उनके रचित भजनों को स्वर भी दिया है। जालोटा ने कहा कि वे फिल्मी गीत व गजल भी गाते हैं, लेकिन भजन उनके मन के करीब हैं।