कैडलक कार के मालिक भीनासर के फूलचंद बैद ने बताया कि बीकानेर रियासत के प्रिंस बिजय सिंह इस गाड़ी को शिकार करने के काम में लेते थे। इसमें ड्राइवर के साथ एक व्यक्ति के लिए आगे और दो व्यक्ति एवं दो बच्चों के लिए पीछे बैठने की सीटें हैं। इस हंटिंग कार में हैडलाइटों से ऊपर व दूर तक तेज रोशनी फेंकने वाली सर्च लाइटें लगी हैं, जो जंगली जानवरों को रात में ढूंढने में मददगार थी। कार के चारों पहियों के नीचे जैक लगे हुए हैं, ताकि पंक्चर होने की स्थिति में उस पहिए को आसानी से बदला जा सके। कार में दो स्टेफनी भी लगी हैं।
बैद ने बताया कि बिजय सिंह की असामायिक मौत के बाद उनकी कार महल में खड़ी रहती थी। इस पर तत्कालीन महाराजा गंगासिंह ने कार को बेचने का मन बनाया। फूलचंद ने कहा कि पूर्व राजपरिवार अच्छे संबंध होने से उनके बाबा चंपालाल बैद ने यह हटिंग कार खरीद ली थी।
नेहरू ने चलाया था, विनोद खन्ना की भी पसंद
वर्ष 1993 में बनी फिल्म ‘क्षत्रिय’ के दृश्य फिल्माने के लिए इस गाड़ी का उपयोग किया गया था। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही फिल्म के हीरो विनोद खन्ना ने इस कार को खरीदने की इच्छा जताई। इसके लिए उन्होंने फूलचंद बैद को खाली चेक देकर कहा था कि जतनी रकम चाहें भर सकते हैं, लेकिन बैद ने चेकविनम्रता पूर्वक लौटा दिया। बैद ने कहा कि यह गाड़ी बीकानेर रियासत और पूर्वजों की धरोहर है, इसे वे बेच नहीं सकते। बैद ने बताया कि यह कार कई राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक आयोजन में उपयोग ली जा सकती है।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कामराज नाडार भी इस गाड़ी में सवारी कर चुके हैं। गंगाशहर में सालमनाथ धोरे के संत सालमनाथ महाराज इसमें बैठ चुके हैं। इसे दीक्षार्थियों की बिंदोली निकालने में भी काम में लिया गया था। उन्होंने बताया कि कार को खरीदने के लिए पूर्व राजघरानों के कई लोगों ने मनचाही कीमत का ऑफर दिया, लेकिन उन्होंने इसे बेचा नहीं।