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बीकानेर नगर स्थापना दिवस- ऊंखळी-मूसळ से कूटते थे खीचड़ा, एक ही थाली में करते थे भोजन

locationबीकानेरPublished: Apr 24, 2020 11:45:08 am

Submitted by:

Atul Acharya

बीकानेर नगर स्थापना दिवस विशेष
 

बीकानेर नगर स्थापना दिवस- ऊंखळी-मूसळ से कूटते थे खीचड़ा, एक ही थाली में करते थे भोजन

बीकानेर नगर स्थापना दिवस- ऊंखळी-मूसळ से कूटते थे खीचड़ा, एक ही थाली में करते थे भोजन

-विमल छंगाणी

बीकानेर. देश की आजादी से पहले रियासतकाल में मनाए जाने वाले नगर स्थापना दिवस की यादों को कई लोग आज भी संजोये हुए है। उस दौर में मनाए जाने वाले नगर स्थापना दिवस को वरिष्ठजन आज भी नहीं भुला पाए है। उस दौर सादगीपूर्ण जीवन, घर, परिवार और मोहल्लों की एकता व प्रेमभाव अधिक था। बीकानेर में रियासतकाल में मनाए जाने वाले नगर स्थापना दिवस को लेकर शहर के कई वरिष्ठजनों ने उस दौर के शहर की आंखो देखी स्थिति बताई ्र जिस दौर के वे कभी साक्षी रहे है।
कई दिन पहले शुरू हो जाती थी तैयारियां

नगर स्थापना दिवस की तैयारियां घर-घर में कई दिन पहले शुरू हो जाती थी।संयुक्त परिवार होने के कारण घर-परिवार की महिलाएं बाजरा, ज्वार, मंूंग को साफ करने के बाद ऊंखळ-मूसळ से खीचड़े की कुटाई कर तैयार करते थे। स्वतंत्रता सैनानी सत्य नारायण हर्ष की धर्मपत्नी सीता देवी हर्ष बताती है कि घरों में जमीन में पत्थर की ऊंखळ लगी होती थी। लकड़ी के मूसळ से खीचड़े को कूटकर तैयार किया जाता था। कूटकर तैयार हुए खीचड़े को खरीदने का चलन नहीं था। चीनी का उपयोग कम कर गुड़ से इमलाणी तैयार की जाती थी। बहन-बेटियों के घर खीचड़ा, इमली और मटकी के साथ कुछ पिसे हुए मसाले भेजने की परम्परा थी।
बीकानेर नगर स्थापना दिवस- ऊंखळी-मूसळ से कूटते थे खीचड़ा, एक ही थाली में करते थे भोजन
चंदा उड़ाने का अधिक चलन, सामुहिक करते थे भोजन

नगर स्थापना दिवस पर उस दौर में हर गली-मोहल्ले और चौक-चौराहों व छत्तों पर चंदा उड़ाने का अधिक चलन था। बाजरा और ज्वार का खीचड़ा आखाबीज और आखातीज को इमलाणी के साथ भोजन के रूप में उपयोग होता था। घर-परिवार के सभी सदस्य एक साथ एक बड़ी थाली में सामुहिक रूप से भोजन करते थे। वरिष्ठजन सुंदर लाल ओझा बताते है उस दौर में घर-परिवार ही नहीं गली-मोहल्लों के लोगों में आपसी प्रेम और भाईचारा अधिक था। लोगों में अपनत्व की भावना थी। नगर स्थापना के दिन गढ़ से बीकानेर महाराजा की सवारी निकलती थी। सुबह महाराजा दर्शन करने लक्ष्मीनाथ मंदिर पहुंचते थे।
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