अधिकतर परकोटा या तो ध्वस्त हो गया अथवा मकानों में समा गया। शासन-प्रशासन भी उदासीन बना हुआ है। आए दिन परकोटे की एेतिहासिक चारदीवारी को तोड़ा जा रहा है। अनधिकृत रूप से इस दीवार को तोड़ कर द्वार बनाए जा रहे हैं। इसको बचाने में न तो जिला प्रशासन पहल कर रहा है और ना ही पुरातत्व विभाग व नगर निगम अपनी जिम्मेदारी उठा रहे हैं।
कहीं घरों में समाई दीवार तो कहीं गायब
शहर के एेतिहासिक परकोटे को हर कोई जब चाहे, जहां से तोडऩे में लगा है। इसकी चारदीवारी को नष्ट करने वालों को न प्रशासन और ना ही इसके लिए जिम्मेदार विभाग रोक रहा है। बदहाली यह है कि अधिकतर स्थानों पर बाहर अथवा अन्दर की ओर बने घर चारदीवारी से सट गए हैं। चारदीवारी में घरों के गेट, बारियां, रोशनदान, बालकनी तक बन गए हैं।
शहर के एेतिहासिक परकोटे को हर कोई जब चाहे, जहां से तोडऩे में लगा है। इसकी चारदीवारी को नष्ट करने वालों को न प्रशासन और ना ही इसके लिए जिम्मेदार विभाग रोक रहा है। बदहाली यह है कि अधिकतर स्थानों पर बाहर अथवा अन्दर की ओर बने घर चारदीवारी से सट गए हैं। चारदीवारी में घरों के गेट, बारियां, रोशनदान, बालकनी तक बन गए हैं।
आठ गज दूर निर्माण के नियम की अनदेखी
रियासतकाल में शहर के परकोटे से सटाकर कोई निर्माण नहीं होता था। शोधकर्ता डॉ. राजेन्द्र कुमार व्यास ने बताया कि स्टेट टाइम में चारदीवारी से आठ गज यानी सोलह फीट दूर दीवार के बाहर की ओर अथवा अन्दर की ओर ही कोई निर्माण का नियम था। हालांकि उस दौर में भी इस नियम की अवहेलना की जानकारी मिलती है। देश की आजादी के बाद अब तक रियासतकाल में बने आठ गज के नियम को खारिज करने की जानकारी नहीं मिलती है। परकोटे को जगह-जगह से तोड़ा गया है। अधिकतर स्थानों पर यह चारदीवारी गायब हो गई है।
रियासतकाल में शहर के परकोटे से सटाकर कोई निर्माण नहीं होता था। शोधकर्ता डॉ. राजेन्द्र कुमार व्यास ने बताया कि स्टेट टाइम में चारदीवारी से आठ गज यानी सोलह फीट दूर दीवार के बाहर की ओर अथवा अन्दर की ओर ही कोई निर्माण का नियम था। हालांकि उस दौर में भी इस नियम की अवहेलना की जानकारी मिलती है। देश की आजादी के बाद अब तक रियासतकाल में बने आठ गज के नियम को खारिज करने की जानकारी नहीं मिलती है। परकोटे को जगह-जगह से तोड़ा गया है। अधिकतर स्थानों पर यह चारदीवारी गायब हो गई है।