कागज से तैयार, डोरी से उड़ते
नगर स्थापना दिवस पर गोलाकार आकृति में चंदा तैयार किए जाते हैं। लगभग चार फीट गोलाकार आकार के इन चंदा को कागज से बनाया जाता है। इन पर सरकंडे की लकड़ी लगाई जाती है। किनारों पर पाग का कपड़ा चिपकाया जाता है। कई चंदा पर बीकानेर रियासत का ध्वज भी प्रतीकात्मक रूप से लगाया जाता है। बड़े आकार के इन चंदा को डोरी की मदद से उड़ाया और छोड़ा जाता है।
संदेश देने की परम्परा
चंदा कलाकार नगर स्थापना दिवस से करीब एक पखवाड़ा पहले ही चंदा बनाने में जुट जाते हैं। वर्तमान में कलाकार ब्रजेश्वर लाल व्यास, गणेश लाल व्यास, भंवर लाल व्यास, पवन व्यास, कृष्ण चन्द्र पुरोहित, अनिल बोड़ा सहित कई कलाकार वर्षो से चंदा बनाने के साथ उन पर चित्र, दोहे उकेर कर संदेश दे रहे हैं। कलाकारों की ओर से तैयार किए जा रहे चंदा की कलात्मकता देखते ही बनती है। कलाकार गणेश लाल व्यास के अनुसार इस बार चंदा पर बीकानेर रियासत के सिक्कों और मोहरों की झलक प्रदर्शित की गई है। वहीं कृष्ण चन्द्र पुरोहित के अनुसार बढ़ती महंगाई, नारी शक्ति, बाल विवाह रोकथाम आदि के संदेश व चित्र उकेरे गए हैं।
गवरा दादी पून दे...
आखाबीज और आखातीज के दिन उड़ाए जाने वाले चंदा के दौरान घरों की छतों पर गवरा दादी पून दे, टाबरिया रा चंदा उड़े के स्वर गूंजते रहते हैं। जिस घर की छत पर चंदा उड़ाया जाता है, वहां से इसे छोडऩे और पुन: उसे लाकर फिर से उड़ाया जाता है।
आखाबीज और आखातीज के दिन उड़ाए जाने वाले चंदा के दौरान घरों की छतों पर गवरा दादी पून दे, टाबरिया रा चंदा उड़े के स्वर गूंजते रहते हैं। जिस घर की छत पर चंदा उड़ाया जाता है, वहां से इसे छोडऩे और पुन: उसे लाकर फिर से उड़ाया जाता है।