होती थी सुनवाई, नहीं थी बदमाशी
बीकानेर रियासतकाल के साक्षी रहे 94 वर्षीय कन्हैया लाल ओझा बताते है कि उस दौर में आमजन की सुनवाई होती थी। महाराजा स्वयं प्रजा का ध्यान रखते थे। राज का भय इतना था कि बदमाश प्रवृत्ति के लोग भयभीत रहते थे। लोगों में राज का भय था। लोग सरल और साधारण थे।दिखावा कम था। लोग एक-दूसरे का ध्यान रखते थे। रात को परकोटे के सभी गेट और बारिया बंद हो जाते थे।
पहलवानी का जुनून, अखाड़ों का चलन
ओझा के अनुसार उस दौर में लोगों में पहलवानी को लेकर जुनून अधिक था। शहर में जगह-जगह अखाड़ों का संचालनन होता था। अखाड़ों में कुश्तियों के दौर चलते रहते थे। लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर अधिक सतर्क थे। कुए, तालाब और बावड़ी ही पानी के साधन थे। महिलाओं की इज्जत अधिक थी। घी, दूध और छाछ की प्रचुरता थी। लोग प्रीत निभाने वाले थे। गली-मोहल्लों में बच्चे पारम्परिक खेलों में व्यस्त रहते थे।