पतंगे काटने व लूटने का चला सिलसिला
आखातीज पर पतंगबाजी के दौरान घरों की छतों पर मौजूद परिवारजनों व युवाओं की मंडलियों में पतंगों के पेच लड़ाने, काटने का सिलसिला दिनभर चला। दूसरों की पतंग काटने पर इनका जोश और खुशियां देखते ही बन रही थी। पतंगबाजी के साथ-साथ घरों की छतों पर कटी पतंगों को लूटने वाले भी सक्रिय रहे। हाथों में बांस, लकडि़या और कंटीली झाडिया लिए कटी पतंगों को लूटने में बच्चे और युवा तत्पर रहे।
युवतियों व महिलाओं ने की पतंगबाजी
आखातीज पर घरों की छतों पर परिवारों के हर आयु वर्ग के सदस्य मौजूद रहे। बच्चों से बुजुर्गो तक ने जमकर पतंगबाजी की। कई घराें की छतों पर युवतियों और महिलाओं ने भी पतंगबाजी की। महिलाओं ने पतंगों के पेच लड़ाए और पतंगबाजी की परम्परा का निर्वहन किया।
पतंग-मांझा की बिक्री
आखातीज पर पतंग-मांझा की दुकानों पर खरीदारों की दिनभर भीड़ रही। पतंगबाजी के साथ-साथ पतंग-मांझा की बिक्री भी चलती रही। पुराने शहर की गली-मौहल्लों से लेकर शहर के मुख्य बाजारों, मुख्य मार्गो, परकोटा से बाहरी क्षेत्रों और कॉलोनी क्षेत्रों मे संचालित हो रही पतंग मांझा की दुकानों पर दिनभर खरीदारी चलती रही।
घर-घर बना खीचड़ा इमलाणी
अक्षय तृतीया पर परम्परानुसार घर-घर खीचड़ा-इमलाणी का भोजन हुआ। गेंहू, बाजरा, मूंग से बने खीचड़ा को इमलाणी ज्यूस के साथ भोजन किया गया। बड़ी की सब्जी विशेष रुप से बनाई गई। शहर में आखाबीज और आखातीज के दिन खीचड़ा-इमलाणी के भोजन की विशेष परम्परा है।
दही-दूध की बनी लस्सी, नींबू शिकंजी व इमलाणी ज्यूस के चले दौर
अक्षय तृतीया पर शहर में दिनभर चले पतंगबाजी के दौर के दौरान खान-पान भी चलता रहा। भीषण गर्मी के दौरान चलती रही पतंगबाजी के दौरान कही दूध-दही की लस्सी बनी तो कही नींबू शिकंजी और इमलाणी ज्यूस के दौर चले। कोल्ड िड्रंक, बिल ज्यूस, कचौरी-समोसा, दहीबड़ा, मिठाईयां आदि के दौर चलते रहे।
चंदा उड़ाने की रस्म
अक्षय तृतीया पर पतंगबाजी के साथ-साथ पारम्परिक रुप से चंदा उड़ाने की रस्म भी हुई। शहर में कई घरों की छतों से चंदा उड़ाने की रस्म हुई। इस दौरान बच्चों और युवाओं ने पारम्परिक रुप से गवरा दादी पून दे टाबरिया रा चंदा उड़े गीत का गायन किया।