अन्य स्थानों पर भी मांग
अशोक कुम्हार ने बताया कि नापासर से राजस्थान के सभी जिलों में मटकियां भेजी जाती है और व्यापारी वहां से अन्य स्थोनों पर भी भेजते है। यहां से मटकियां सबसे ज्यादा राजगढ़, चूरू, चौमू, जयपुर व सीकर जिलों में भेजी जाती है। उन्होंने बताया कि सीजन बीतने के बाद मटकियों के पूरे दाम नहीं मिल पाते है और परिवार का पालन पोषण करने के लिए आधे दामों में मटकियां बेचनी पड़ती है। व्यापारी लोग कम दामों में खरीदकर आगे सीजन के समय दुगुनी की मतों में मटकियां बेचते है। अशोक ने बताया कि जब मटकिया पकाते है तो आग और धुएं से परेशानी का सामना करना पड़ता है।
बिक्री हुई कम
मालाराम कुम्हार करीब 50 वर्षों से मटकी बनाने का पुश्तैनी काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण भी इस कारोबार में मार पड़ी है। लॉकडाउन में मटकियां बहुत कम बिक्री हो रही है। साथ ही साधनों के अभाव में मटकियां अन्य स्थानों पर भी नहीं जा पा रही है। जो मटकी 70 रुपए में बेचते थे। वह आज घर खर्च निकालने के लिए 50 से 55 रुपए में देनी पड़ रही है उन्होंने बताया कि मटकियों की लागत अधिक होने तथा इस कारोबार में फायदा कम होने से युवा पीढ़ी ने अपना कारोबार बदल लिया है।
इलेक्ट्रोनिक चाक मिले
अशोक कुम्हार ने बताया कि खादी ग्रामोद्योग की ओर से 20 इलेक्ट्रॉनिक चाक दिए गए थे। जबकि काम करने वाले करीब 50 परिवार हैं जो बीपीएल श्रेणी में थे उन्हें बिना किसी शुल्क के दिए गए। जबकि एपीएल श्रेणी के लोगों को 4500 रुपए की कीमत में दिए गए। इलेक्ट्रॉनिक चाक मिलने पर मजदूरों को काम करने में थोड़ी आसानी मिली है। इसके अलावा अन्य कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है।
चार प्रकार की मिट्टी से बनाई जाती
गौरतलब है कि नापासर की मटकियों का पानी अधिक ठण्डा रहा है। यहां की मटकियां चार प्रकार की मिट्टी से बनाई जाती है। इन मटकियों को सफेद, काली, पीली व लाल मिट्टी को मिलाकर तैयार किया जाता है। इनमें सफेद और काली मिट्टी काफी महंगी है। मटकी बनाने के लिए मिट्टी कोलायत क्षेत्र से लाई जाती है। इसके लिए तेजरासर गांव के जोहड की भी मिट्टी उपयोग में ली जाती है। मिट्टी के दाम भी हर साल बढ़ जाते है तथा इस काम में घर के सभी सदस्य भी लगे रहते है। महिलाएं व बच्चे भी कामों में हाथ बटाते है लेकिन जितनी मेहनत करते हैं। उतनी आमदनी नही मिल पाती।
गौरतलब है कि नापासर की मटकियों का पानी अधिक ठण्डा रहा है। यहां की मटकियां चार प्रकार की मिट्टी से बनाई जाती है। इन मटकियों को सफेद, काली, पीली व लाल मिट्टी को मिलाकर तैयार किया जाता है। इनमें सफेद और काली मिट्टी काफी महंगी है। मटकी बनाने के लिए मिट्टी कोलायत क्षेत्र से लाई जाती है। इसके लिए तेजरासर गांव के जोहड की भी मिट्टी उपयोग में ली जाती है। मिट्टी के दाम भी हर साल बढ़ जाते है तथा इस काम में घर के सभी सदस्य भी लगे रहते है। महिलाएं व बच्चे भी कामों में हाथ बटाते है लेकिन जितनी मेहनत करते हैं। उतनी आमदनी नही मिल पाती।