यहां मिट्टी -कुट्टी से बनी गवर, ईसर के साथ भगवान कृष्ण, गुर्जरनी और भगवान गणेश की अद्भुत प्रतिमाओं का पूजन होता है। ये प्रतिमाएं गणगौर प्रतिमाओं की ही तरह बनी हुई है। रियासतकाल से शहरवासियों में इन प्राचीन गणगौर प्रतिमाओं के प्रति विशेष आस्था व श्रद्धा है। इस बार 12 व 13 अप्रेल को इन अद्भुत गणगौर प्रतिमाओं को मेला भरेगा।
अद्भुत है गणगौर प्रतिमाएं
एकादशी व द्वादशी दो दिन तक आलूजी की गणगौर प्रतिमाओं का मेला भरता है। बालिकाएं व महिलाएं पूजन कर प्रतिमाओं के समक्ष गीत-नृत्य प्रस्तुत करती है। आलूजी के वंशज ईश्वर महाराज बताते है कि ये प्रतिमाएं मिट्टी, कागज की लुगदी,दाना मेथी आदि से बनी हुई है। इसलिए इनका वजन भी अधिक है। ये प्रतिमाएं सिर से नाभि तक ही बनी हुई है। लगभग 22 से 25 इंच तक इनकी लंबाई है। इनको पारम्परिक वस्त्र व आभूषणों से श्रृंगारित कर स्टैण्ड पर विराजित किया जाता है। सामान्यतया गणगौर प्रतिमाएं सिर से पांव तक बनी होती है। ये प्रतिमाएं सिर से नाभि तक ही बनी हुई है।
ऐसी प्रतिमाएं कही नहीं
आलूजी के वंशज ईश्वर महाराज का कहना है कि प्रदेश में विभिन्न आकार, रंग, रूप सहित कलात्मक गणगौर प्रतिमाएं देखने को मिलती है, लेकिन आलूजी की ओर से तैयार की गई भगवान गणेश, कृष्ण, गुर्जरनी की प्रतिमाएं पूरे राजस्थान में नहीं है। केवल बीकानेर में ही है। पिछले 130 साल से भी अधिक समय से इनकी पूजा-अर्चना का क्रम जारी है। श्याम स्वरूप में भगवान कृष्ण है। जो चतुर्बाहु है। बंशी बजा रहे है। भगवान गणेश एकदंती है व त्रिनेत्री है। गुर्जरनी सिर पर कलश धारण किए है। वहीं ईसर व गवर की प्रतिमाएं भी है।
हो रही श्रृंगारित
आलूजी की गणगौर प्रतिमाओं की रंगाई के साथ वस्त्र-आभूषणों से सजाने का क्रम शुरू हो गया है। आलूजी के वंशज शिव कुमार छंगाणी के अनुसार प्रतिमाओं को पारम्परिक वस्त्रों के साथ-साथ दशकों पुराने आभूषणों से श्रृंगारित किया जा रहा है। दशमी से इन प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना का क्रम शुरू हो जाता है। बड़ी संख्या में महिलाएं पूजा-अर्चना कर पानी पिलाने, खोळा भरने आदि की रस्म निभाती है।