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भाजपा का बेहतर चुनाव प्रबंधन पड़ा कांग्रेस पर भारी

locationबीकानेरPublished: Nov 20, 2019 11:07:36 am

Submitted by:

Atul Acharya

bikaner nagar nigam election 2019- बेहतर चुनावी प्रबंधन, जिताऊ से अधिक टिकाऊ प्रत्याशी की तलाश, न्यूनतम नाराजगी के साथ टिकट वितरण और चुनाव से पहले राम मंदिर का निर्णय आना।

bikaner nagar nigam election 2019 BJP won in 38 wards

भाजपा का बेहतर चुनाव प्रबंधन पड़ा कांग्रेस पर भारी

दिनेश स्वामी
बीकानेर. बेहतर चुनावी प्रबंधन, जिताऊ से अधिक टिकाऊ प्रत्याशी की तलाश, न्यूनतम नाराजगी के साथ टिकट वितरण और चुनाव से पहले राम मंदिर का निर्णय आना। ये कारण भाजपा (bjp) को नगर निगम (nagar nigam bikaner) के 80 वार्डों में से 38 में प्रत्याशी जिताने में मददगार साबित हुए। दूसरी ओर टिकट वितरण को लेकर स्थानीय नेताओं में नाराजगी, प्रदेश महिला कांग्रेस और शहर अध्यक्ष को तव्वजों नहीं देना और जमीनी स्तर पर चुनावी प्रबंधन नहीं होना कांग्रेस पर भारी पड़े। कांग्रेस (congress) चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करते दिखने के बावजूद 80 में से 30 सीटों पर सिमट गई। चुनाव पूरी तरह राजस्थान सरकार के मंत्री डॉ. बीडी कल्ला (dr.bd kalla) बनाम केन्द्र सरकार के मंत्री अर्जुनराम मेघवाल (arjunram meghwal) बन गया था। राजनीति के क्षेत्र में दोनों मंजे हुए खिलाड़ी हैं। मुकाबला भी प्रतिष्ठा से जुड़ा था। इस मुकाबले में भाजपा के केन्द्रीय मंत्री मेघवाल की रणनीति कांग्रेस के डॉ. कल्ला पर भारी पड़ी।

भाजपा में प्रदेश स्तर तक का सहयोग
निगम चुनाव में प्रदेश स्तर से संगठन में ऊर्जा फूंकने के लिए भाजपा (bjp) के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया आए। श्रीगंगागनर जिले से भाजपा के पूर्व मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी को चुनाव समिति की कमान सौंपी गई थी। उनके साथ शहर जिलाध्यक्ष डॉ. सत्यप्रकाश आचार्य की टीम रही। देहात भाजपा को भी चुनाव में सक्रिय रूप से जोडऩे के लिए टिकट वितरण से पहले देहात पदाधिकारियों से वार्डों का सर्वे कराने की रणनीति भी सफल साबित हुई।
कांग्रेस का बड़ा नेता नहीं आया
दूसरी तरफ कांग्रेस (congress) के प्रदेशाध्यक्ष या अन्य प्रदेश स्तरीय कोई बड़ा नेता चुनाव के दौरान कार्यकर्ताओं में ऊर्जा फूंकने नहीं आया। जिले के प्रभारी मंत्री सालेह मोहम्मद जरूर बीकानेर में रहे, लेकिन शहर कांग्रेस और देहात कांग्रेस की सक्रियता चुनाव में नजर नहीं आई। यही कमी चुनाव परिणाम को चौपट कर गई।
नहीं थे चुनावी मुद्दे
चुनाव में मुद्दों की बात करें तो भाजपा के पास पिछले पांच साल के उनके नगर निगम बोर्ड कार्यकाल की कोई बड़ी उपलब्धि गिनाने को नहीं थी। एेसे में पार्टी ने मुद्दों की जगह प्रत्याशी की छवि को आगे रखने की नीति अपनाई गई। दूसरी तरफ कांग्रेस के पास भाजपा बोर्ड की विफलताओं को मुद्दा बनाने का मौका था, जिसमें वह चूक गई। चुनाव से ठीक पहले आए अयोध्या मामले में फैसले पर लोगों की नजरें थी, लेकिन दोनों ही दलों ने इसे चुनाव से दूर रखा। भाजपा ने अल्पसंख्यकों को चुनाव मैदान में उतारकर कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले वार्डों में भी सेंध लगाई।
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