परिषद कर्मचारी तह बाजारी के तहत दुकानदारों के पास पहुंचकर तह बाजारी शुल्क प्राप्त कर उनको परिषद की रशीद भी दी जाती थी। अस्सी के दशक तक तह बाजारी परिषद का राजस्व प्राप्ति का साधन रहा। प्रति वर्ग गज के अनुसार पालिका दुकान व्यवसाय के लिए अपनी खाली पड़ी जमीनों को किराए पर देता था। अब निगम में तह बाजारी व्यवस्था नहीं है।
इनसे मिलती थी तह बाजारी
तह बाजारी की व्यवस्था में परिषद अपनी खाली पड़ी जमीनों को अस्थायी दुकानें लगाने के लिए किराए पर देता था। खींची बताते है कि उस दौर में कोटगेट सब्जी मण्डी, फड बाजार, बड़ा बाजार सब्जी मण्डी, कोटगेट के पास पुष्पों की दुकानों, पट्टी पेडा, सहित स्थायी दुकानों के आगे लगाई जाने वाली अस्थायी दुकानें, पाटे, मेले-मगरिए, सर्कस आदि के दौरान जो परिषद की जमीनों पर अस्थायी दुकानें लगती थी उनसे तह बाजारी के रूप में राजस्व प्राप्त होता था। वहीं कई स्थायी दुकानें भी तह बाजारी के रूप में थी जिनसे हर माह परिषद को किराए के रूप में राजस्व प्राप्त
होता था।
तह बाजारी की व्यवस्था में परिषद अपनी खाली पड़ी जमीनों को अस्थायी दुकानें लगाने के लिए किराए पर देता था। खींची बताते है कि उस दौर में कोटगेट सब्जी मण्डी, फड बाजार, बड़ा बाजार सब्जी मण्डी, कोटगेट के पास पुष्पों की दुकानों, पट्टी पेडा, सहित स्थायी दुकानों के आगे लगाई जाने वाली अस्थायी दुकानें, पाटे, मेले-मगरिए, सर्कस आदि के दौरान जो परिषद की जमीनों पर अस्थायी दुकानें लगती थी उनसे तह बाजारी के रूप में राजस्व प्राप्त होता था। वहीं कई स्थायी दुकानें भी तह बाजारी के रूप में थी जिनसे हर माह परिषद को किराए के रूप में राजस्व प्राप्त
होता था।
रहती थी व्यवस्था, मिलता था राजस्व
तह बाजारी की व्यवस्था के दौरान उस दौर में शहर के मुख्य बाजारों में सड़कों के किनारे लगने वाली अस्थायी दुकानें निर्धारित सीमा क्षेत्र में ही लगती थी। खींची बताते है कि इससे बाजारों की यातायात व्यवस्था सहित अन्य व्यवस्थाएं बनी रहती थी। सड़कों पर अतिक्रमणों की भरमार नहीं थी। खाली पड़ी जमीनों से परिषद को राजस्व भी मिल जाता था। आज एेसी व्यवस्था नहीं होने से हर तरफ अतिक्रमण बढ़ रहे है।
तह बाजारी की व्यवस्था के दौरान उस दौर में शहर के मुख्य बाजारों में सड़कों के किनारे लगने वाली अस्थायी दुकानें निर्धारित सीमा क्षेत्र में ही लगती थी। खींची बताते है कि इससे बाजारों की यातायात व्यवस्था सहित अन्य व्यवस्थाएं बनी रहती थी। सड़कों पर अतिक्रमणों की भरमार नहीं थी। खाली पड़ी जमीनों से परिषद को राजस्व भी मिल जाता था। आज एेसी व्यवस्था नहीं होने से हर तरफ अतिक्रमण बढ़ रहे है।
प्रति वर्ग गज के अनुसार शुल्क
तह बाजारी के तहत परिषद प्रतिदिन और मासिक आधार पर राजस्व प्राप्त करता था। उस दौर में तह बाजारी शुल्क प्रति वर्ग गज के अनुसार प्राप्त किया जाता था तथा दर निर्धारित थी। तीन रुपए से लेकर पन्द्रह रुपए तक मासिक किराया शुल्क लिया जाता था। तह बाजारी उन लोगों के लिए अधिक फायदेंमंद थी, जो स्वयं भूमि नहीं होने व दुकान नहीं होने के बावजूद परिवार के भरण पोषण के लिए अस्थायी दुकान के माध्यम से रोजगार प्राप्त कर सकते थे।