उस दौर में पालिका के कर्मचारी रहे नरसिंह दास आचार्य बताते है कि शहर के विभिन्न मोहल्लों में पालिका की ओर से अनिवार्य शिक्षा की स्कूलों का संचालन किया जाता था। स्कूलों में शिक्षकों के वेतन से लेकर भवन किराया, संचालन, प्रशासनिक व्यवस्थाएं आदि की सम्पूर्ण जिम्मेदारी नगर पालिका व बाद में नगर परिषद की रही। ७० के दशक में पालिका की ओर से संचालित स्कूलें शिक्षा विभाग को हस्तांतरित हो गई।
नम्बरों से होती थी पहचान
नगर पािलका की ओर से संचालित स्कूलों की पहचान उनको आवंटित किए गए नम्बरों से होता था। वर्ष १९६२-६३ में अनिवार्य शिक्षा शााला संख्या दो के विद्यार्थी रहे प्रो. एस एल रंगा बताते है कि उस दौर में शहर में करीब ३० से अधिक स्कूलें थी। सभी स्कूलों को नम्बर आंवटित थे। शहर के लगभग हर क्षेत्र में नगर पालिका की ओर से स्कूलों का संचालन किया जाता था। नियम कडे थे। गणित विषय पर अधिक जोर था। गुरुजन विद्यार्थियों पर अधिक मेहनत करते थे।
नगर पािलका की ओर से संचालित स्कूलों की पहचान उनको आवंटित किए गए नम्बरों से होता था। वर्ष १९६२-६३ में अनिवार्य शिक्षा शााला संख्या दो के विद्यार्थी रहे प्रो. एस एल रंगा बताते है कि उस दौर में शहर में करीब ३० से अधिक स्कूलें थी। सभी स्कूलों को नम्बर आंवटित थे। शहर के लगभग हर क्षेत्र में नगर पालिका की ओर से स्कूलों का संचालन किया जाता था। नियम कडे थे। गणित विषय पर अधिक जोर था। गुरुजन विद्यार्थियों पर अधिक मेहनत करते थे।
पार्षद करते थे निरीक्षण
नगर पालिका और बाद में नगर परिषद की ओर से संचालित स्कूलों में पालिका के प्रशासक व अन्य अधिकारी समय-समय पर निरीक्षण करते थे। प्रो. रंगा के अनुसार जिस वार्ड में स्कूल संचालित होती थी, उस वार्ड के पार्षद स्कूलों का सतत निरीक्षण कर व्यवस्थाओं और बच्चों की पढ़ाई पर नजर बनाए रखते थे। हर स्कूल में पांच से सात शिक्षक कार्यरत थे। पानी, बिजली, सफाई, शिक्षण सामग्री, शिक्षकों के वेतन आदि की सभी व्यवस्थाएं स्थानीय निकाय ही करता था।
नगर पालिका और बाद में नगर परिषद की ओर से संचालित स्कूलों में पालिका के प्रशासक व अन्य अधिकारी समय-समय पर निरीक्षण करते थे। प्रो. रंगा के अनुसार जिस वार्ड में स्कूल संचालित होती थी, उस वार्ड के पार्षद स्कूलों का सतत निरीक्षण कर व्यवस्थाओं और बच्चों की पढ़ाई पर नजर बनाए रखते थे। हर स्कूल में पांच से सात शिक्षक कार्यरत थे। पानी, बिजली, सफाई, शिक्षण सामग्री, शिक्षकों के वेतन आदि की सभी व्यवस्थाएं स्थानीय निकाय ही करता था।
शिक्षा की जगी अलख
देश की आजादी के बाद शहर में प्राथमिक शिक्षा में पालिका की ओर से संचालित अनिवार्य शिक्षा के स्कूलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन स्कूलों से शहर में शिक्षा की अलख जगी। पूर्व विधायक व बोर्ड अध्यक्ष रहे डॉ. गोपाल कृष्ण जोशी बताते है कि सीमित साधन-संसाधनों के बावजूद पहले नगर पालिका व बाद में नगर परिषद ने इनका संचालन किया। इन स्कूलों के बेहतर ढंग से संचालन में परिषद के सामने आर्थिक समस्या भी थी। डॉ. जोशी बताते हैं कि उस दौर मे अधिकांश स्कूलें किराए की इमारतों में संचालित होती थी।
देश की आजादी के बाद शहर में प्राथमिक शिक्षा में पालिका की ओर से संचालित अनिवार्य शिक्षा के स्कूलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन स्कूलों से शहर में शिक्षा की अलख जगी। पूर्व विधायक व बोर्ड अध्यक्ष रहे डॉ. गोपाल कृष्ण जोशी बताते है कि सीमित साधन-संसाधनों के बावजूद पहले नगर पालिका व बाद में नगर परिषद ने इनका संचालन किया। इन स्कूलों के बेहतर ढंग से संचालन में परिषद के सामने आर्थिक समस्या भी थी। डॉ. जोशी बताते हैं कि उस दौर मे अधिकांश स्कूलें किराए की इमारतों में संचालित होती थी।