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बीकानेर लोकसभा क्षेत्र: निर्दलीय प्रत्याशियों का अनोखा था चुनाव प्रचार का तरीका

locationबीकानेरPublished: Apr 22, 2019 09:58:35 am

Submitted by:

dinesh kumar swami

बीकानेर. वैसे तो बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में यह १६वां चुनाव होने जा रहा है, लेकिन १९८९, १९९१ और १९९६ के लोकसभा चुनाव लडऩे वाले राजस्थानी कवि भीम पांडिया ने लोगों का दिल जीत लिया था।

बीकानेर लोकसभा क्षेत्र: निर्दलीय प्रत्याशियों का अनोखा था चुनाव प्रचार का तरीका

बीकानेर लोकसभा क्षेत्र: निर्दलीय प्रत्याशियों का अनोखा था चुनाव प्रचार का तरीका

बीकानेर. ‘मानव धरम एक ही जग में, जन सागर गाजै, भींव रो तुनतुनियो बाजै। तीस साल पुरानी राजस्थानी भाषा में लिखी एसी दर्जनों कविताएं बीकानेर लोकसभा क्षेत्र के बुजुर्गों के जेहन में आज भी ताजा हैं। वैसे तो बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में यह १६वां चुनाव होने जा रहा है, लेकिन १९८९, १९९१ और १९९६ के लोकसभा चुनाव लडऩे वाले राजस्थानी कवि भीम पांडिया ने लोगों का दिल जीत लिया था।
बुजुर्ग व्यक्ति बताते हैं कि पांडिया की लिखी कविताओं के पर्चे उस दौर में हर घर में संभालकर रखे जाते थे। वजह वोट की अपील या चुनाव चिह्न नहीं, बल्कि औजपूर्ण कविताएं थी। एक प्रत्याशी विष्णु व्यास १९८०, १९८९ और १९९१ के चुनाव लड़े। विष्णु कार्टूनिस्ट थे और उस दौर में तीखे व्यंग्य वाले कार्टूनों ने राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी थी।
कविता में घोषणा-पत्र और कटाक्ष
बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे भीम पांडिया ने अपनी ओजस्वी कविताओं से आमजन की पीड़ा, समस्याओं और राजनीति में आई कमी पर निशाने साधे। अपने चुनावी घोषणा पत्र पर कविताएं प्रकाशित कराई थी। उनके पुत्र राजू पांडिया ने बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान जिस गली-मोहल्ले में भीम पांडिया पहुंचते, लोगों की भीड़ वहां जमा हो
जाती। बिना माइक, स्टेज के वे अपनी कविताओं का वाचन शुरू कर देते। वे अपने अनूठे प्रचार के कारण आज भी लोगों के दिल में बसते हैं। दशकों पहले लिखी गई उनकी कविताएं भी लोगों को
याद हैं।
कार्टून बने प्रचार का माध्यम
बीकानेर क्षेत्र से तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरे पेन्टर विष्णु व्यास के चित्र और कार्टून
सालों बाद भी लोगों में पहचान बनाए हुए हैं। रैलियों, सभाओं से दूर कार्टून के माध्यम से अपनी बात रखना विष्णु व्यास की विशिष्ट शैली रही। वे १९८०, १९८९, १९९१ के लोकसभा चुनाव लड़े। एक चित्रकार होने के कारण विष्णु व्यास ने आमजन की पीड़ा, समस्याओं व राजनीति में आई गिरावट को अपने कार्टूनों का विषय बनाया और यही शैली उनके चुनाव प्रचार में कायम रही। व्यास के साथी रहे नरसिंह दास व्यास लखवत बताते हैं कि चुनाव प्रचार के दिनों में रोजाना कार्टून बनाना और शहर के प्रमुख स्थानों, गली-मोहल्लों व चौक-चौराहों पर लगाना ही उनका प्रचार का माध्यम रहा।
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