आज के इस दौर में भी चरखे और ढेरिया से सूत कातकर अपने हाथ के हुनर को जिंदा रखने की भला कौन सोचता है। सूती वस्त्र, ऊंट की सजावट के गोरबंद, चारपाई की बुनाई जैसे काम हमारी ग्रामीण विरासत भी रहे हैं। सूत कातकर सामान बनाने के चलते बीकानेर से 17 किलोमीटर दूर कोलासर गांव के बुजुर्ग किशनाराम मेघवाल की पहचान देश-दुनिया में बन रही है।
75 वर्षीय किशनाराम अपने हाथ के हुनर से लोगों को रूबरू करवाते हैं। साथ ही कई पुराने समय की कलात्मक चीजों को खुद हाथों से बनाते हैं। इनके इस हुनर को देखने दूर-दराज से तो लोग आते ही हैं। बीकानेर आने वाले पर्यटक भी इनके गांव तक उत्सुकतावंश खिंचे चले जाते हैं। किशनाराम भी यह काम सीखने की ललक रखने वालों को निराश नहीं करते। वह पूरी तन्मयता से सिखाते हैं। कहते हैं किसी तरह यह परम्परागत विरासत अगली पीढ़ी में आ जाए।
हाथों से तैयार साज-सज्जा का सामान
किशनाराम साज-सज्जा का सामान अपने हाथों से तैयार करते हैं। गांव में अपने घर में सूत कातने से लेकर बुनाई तक पूरा काम खुद करते हैं। इसमें सूती वस्त्र, ऊंट की सजावट का सामान, गोरबंद, दरी, खेस, कंबल ऊनी एवं खादी उत्पाद, वस्त्र एवं साज सज्जा का सामान, चारपाई और पीढ़ी की बुनाई शामिल है।
युवाओं को जोड़ना जरूरी
मेघवाल बताते हैं कि युवा इसे सीखने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, इससे निराशा होती है। पहले भी पैसों की जगह मन की संतुष्टि के लिए काम करते थे, आज भी वही सोच है। गांव में कलात्मक ढंग से बनी चारपाई, कुर्सियां, बैठने का पीढ़ा अथवा साज-सज्जा के समान पुरानी परंपरा है, जिसे जिंदा रखना ही उनका मकसद है।