जब हम अपने बच्चे को उस बेजान फर्श पर गिरने पर पुनः मारने के लिए कहते है तो हम कही न कही अनजाने में उसे यही सीखा रहे है कि उन्हें चोट करने पर या उनके अनुसार काम न करने पर उन्हें प्रत्युत्तर में उन्हें मारने का अधिकार है, जब हम उस बच्चे को चींटी को मारने का कहते है तो महज हम उसके जीवन को एक मजेदार गतिविधि बना रहे है। और इस प्रक्रिया में दुसरो का जीवन बच्चे के लिए उसका महत्व खो देता है और परिणामस्वरूप बहुत कम उम्र में ही बच्चे में हिंसक स्वभाव का बीजारोपण हम स्वंय कर देते है और फिर धीरे धीरे ये घटनाएं स्कूलों में या दोस्तो के साथ खेलने के दौरान और यहाँ तक कि बच्चो द्वारा अपने माता पिता को मारने तक विकसित हो चुकी होती है। और बच्चो में एक कुरीति जन्म ले चुकी होती है कि जब भी उन्हें सामने वाले का बर्ताव उनके अनुकूल न लगे तो वो मारना अपना अधिकार समझने लगते है। बच्चे के गिरने पर उसे येन केन चुप करवाना हमारी प्राथमिकता होती है क्योंकि इसके लिए यही तरीका हमे सबसे आसान लगता है की जो की बच्चे को रोना भुला देता है
यह एक सामान्य पहलू होता है कि बच्चे द्वारा गिरने पर हम फर्श को मारते है या कहते है के इस चींटी ने मारा क्या ये लो इसे वापस मार देते है। और बच्चा चुप हो जाता है। अब प्रश्न उठता है अगर ऐसा न करे तो क्या करे?
तो मेरा जवाब यही रहेगा कि उसे गले लगाकर रोने की अनावश्यक अनुमति देनी चाहिए क्योंकि चोट लगी है तो बच्चा रोयेगा ही मैं मानती हूँ यह हमें काफी असहजता भरा लगेगा या डरावना भी
ऐसे शब्दों का प्रयोग कतई न करे मैंने तुम्हे कहा था न मत कूदो, अब बैठ जाओ और रोओ आदि।
उसे उस फर्श को देखने का कहे कि देखो उसे भी कही चोट तो नही लगी इससे उसके अंदर सहानभूति का भाव उतपन्न होगा हमारे आस पास वैसे ही आजकल इतनी हिंसात्मक घटनाएं हो रही है यह उनमें सहानुभति का भाव विकसित करने में निश्चित रूप से सहायक साबित होगा । तो अगली बार बच्चा अगर गिरे तो उसे गले लगाए और उनके साथ ही उस जगह को भी दिखायें कि उसे भी कही चोट तो न लगी है वह सही है न इस तरह आप एक चींटी को बचा सकते है । उक्त विषय को पढ़ने पर बहुत सामान्य लगेगा किंतु है नही। लेखिका स्वंय एक माँ होने के साथ ही वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बच्चो में बढ़ती हिंसक प्रवृतियो पर शोध कर रही है उसी संदर्भ में एक छोटा सा वृतांत जो स्वंय के साथ हुआ उसे समाधान सहित प्रस्तुत करने का प्रयास किया है ।