१०३७ किलोमीटर लम्बी सीमा पाकिस्तान से प्रदेश की १०३७ किलोमीटर लम्बी सीमा लगती है। नब्बे के दशक में जब बॉर्डर पर तारबंदी की गई, अधिकांश इलाका रेगिस्तानी धोरों वाला था। पंजाब के बाद राजस्थान में पश्चिमी सीमा पर श्रीगंगानगर जिले का महज ५०-६० किलोमीटर तक का क्षेत्र ही समतल था। जहां गंगनहर परियोजना का पानी खेतों तक पहुंच रहा था। इसके बाद रायसिंहनगर, अनूपगढ़ और खाजूवाला क्षेत्र में सीमावर्ती एरिया में नहरी पानी पहुंच तो रहा था लेकिन बॉर्डर के नजदीक रेतीला और अनकमांड एरिया ही था।
तारबंदी के पार भी जाते हैं किसान श्रीगंगानगर जिले से लगते बॉर्डर और बीकानेर जिले के कुछ हिस्से में बॉर्डर पर तारबंदी के पार की भारतीय जमीन पर भी किसान खेती करते हैं। तारबंदी में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गेट लगे हुए हैं। जहां से सुबह ६ बजे से शाम ५ बजे के बीच किसानों को खेती करने के लिए जाने दिया जाता है। तारबंदी और जीरो लाइन (भारत-पाकिस्तान को विभाजन करने वाली लाइन) के बीच करीब पांच सौ मीटर भूमि भारत की है। जिसकी निगरानी बीएसएफ करती है। इसी भूमि पर किसान खेती करते हैं।
भूमिपुत्र के पसीने से बदली तस्वीर श्रीगंगानगर जिले से लगते २११ किलोमीटर और बीकानेर से लगते १६० किलोमीटर लंबे बॉर्डर पर अब भौगोलिक स्थिति बदली नजर आने लगी है। पहले रेतीले टीले होने से यहां पर भी बीएसएफ को ऊंटों पर गश्त करनी पड़ती थी। अब किसानों ने पसीना बहाकर जमीन को समतल कर दिया है। सिंचाई पानी मिलने से लगातार कई साल खेती कर रहे होने से अब सिंचिंत क्षेत्र की फसलें गेहूं और सरसों तक की बुवाई तारबंदी के नजदीक तक होने लगी है। बीकानेर से आगे जैसलमेर और बाड़मेर से लगते ६६६ किलोमीटर लंबे बॉर्डर पर आज भी रेतीले धोरे हैं।
सीमावर्ती क्षेत्र के लिए कृषि बजट में हो प्रावधान सीमावर्ती किसान पुरुषोतम सारस्वत कहते हैं कि सीमावर्ती किसान पंजाब में बॉर्डर पर खेती करने वाले किसान को एक हजार रुपए प्रति एकड़ सालाना की दर से मुआवजा दिया जाता है। हालांकि यह मुआवजा तारबंदी के अंदर आई जमीन के किसानों को ही मिलता है। राजस्थान सरकार को भी कृषि बजट में विषम परिस्थितियों में बॉर्डर पर खेती करने वाले किसानों को प्रति एकड़ सालाना मुआवजा देना चाहिए। तारबंदी से एक किलोमीटर भारतीय सीमा में खेती करने वाले किसानों के लिए सरकार को कृषि बजट में प्रावधान करना चाहिए