बीकानेर जिले के तीन में से दो मंत्री, कई पूर्व और वर्तमान विधायक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से माइनिंग से जुड़े हुए हैं। इन्हीं की शह पर खनन माफिया ने इस पूरे क्षेत्र को अपनी जद में ले रखा है। बीकानेर में निकलने वाली जिप्सम की गुणवत्ता बेहतर है। यहां जिप्सम की खानें श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों की तुलना में कई गुणा अधिक हैं, लेकिन राजस्व के मामले में श्रीगंगानगर 17 करोड़, हनुमानगढ़ 12.50 करोड़ रुपए के साथ पहले और दूसरे नम्बर पर है। जबकि बीकानेर महज आठ करोड का राजस्व दे रहा है। इस पर भी तुर्रा यह कि सरकार बीकानेर की जांच करने के बजाय श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलो की जांच कर रही है। जांच की आड़ में इन दोनों जिलों में खनन के नए पट्टे जारी नहीं किए जा रहे। ऐसे में बीकानेर का ठेकेदार चांदी कूट रहा है। श्रीगंगानगर के तकरीबन सभी विधायक बाकायदा लिखित में जिप्सम के एसटीपी पट्टे दिए जाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन खनन विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
निदेशालय खान एवं भूविज्ञान विभाग ने 22 अप्रेल 2022 को एक आदेश जारी कर राज्य में निकलने वाले खनिजों के नियंत्रण के लिए नए दिशा निर्देश जारी किए हैं, लेकिन इस गाइड लाइन में जिप्सम को अलग रखा गया है। इस आदेश के जारी होने के बाद खनन के जानकार कई सवाल खड़े कर रहे हैं। सबसे बड़ा अंदेशा इस बात का है कि यदि जिप्सम को इस गाइडलाइन से मुक्त रखा गया तो जिप्सम रॉयल्टी का ठेकेदार अगले कई वर्षों तक के लिए जिप्सम का भंण्डारण कर लेगा। ऐसे में नया ठेका लेने में रुचि कौन दिखाएगा?
अप्रेल में जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बीकानेर दौरे पर आए तो कई लोगों ने शिकायतें की। जिस पर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों की बैठक लेकर खनन मे चल रही गड़बडिय़ों को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने के निर्देश दिए। लेकिन अधिकारियों ने ओवरलोडिंग रोकने तक खुद को सीमित कर लिया।