आमतौर पर कृष्ण मृग शांत इलाकों में रहना पसंद करते हैं। गजनेर व कोलायत में खनन में होने वाले तेज धमाके व ज्यादा आवाजाही से ये वहां से दूर भाग रहे हैं। कृष्ण मृग के कई जगह आवास भी उजड़ गए हैं, जिससे वे अब बीकानेर के विवि व आस-पास की गोचर में आ रहे हैं।
इन दिनों यहां कृष्ण मृग का झुंड नजर आ रहे हैं। कृष्ण मृग सवाईमाधोपुर, कोटा , रैण, जोधपुर , जैसलमेर , चूरू व पश्चिमी राजस्थान के साथ गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा आदि जगह पाए जाते हैं। बीकानेर में कई साल पहले कृष्ण मृग काफी संख्या में थे, लेकिन फिर इनकी संख्या में गिरावट आने लग गई। अब फिर से कृष्ण मृग की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
यहां पर्याप्त खाना
गजनेर क्षेत्र में खनन ज्यादा होने से ब्लैक बक विवि परिसर में नजर आने लगे हैं। विवि परिसर व आस-पास इनको पर्याप्त रूप से खाना मिल रहा है। एेसे बढ़े कृष्ण मृग
वर्ष संख्या
2016 242
2017 259
गजनेर क्षेत्र में खनन ज्यादा होने से ब्लैक बक विवि परिसर में नजर आने लगे हैं। विवि परिसर व आस-पास इनको पर्याप्त रूप से खाना मिल रहा है। एेसे बढ़े कृष्ण मृग
वर्ष संख्या
2016 242
2017 259
अब गजनेर व कोडमदेसर में
बीकानेर में पहले गजनेर, कोडमदेसर, कोलायत, झझु, दियातरा, बज्जू आदि में काले हरिण मिलते थे, लेकिन अब ये
सिर्फ गजनेर व कोडमदेसर आदि क्षेत्रों में ही दिखाई देते हैं। अब ये गजनेर से विवि की भूमि पर आवास बनाने में जुटे हैं। कृष्ण मृग इंडियन वाइल्ड लाइफ एक्ट के शेड्यूल वन की प्रजाति है। इसमें टाइगर, शेर, हाथी, गेंडा, गोडावन, वल्चर शामिल हैं।
बजट की समस्या आ रही है। साल २०१२ में चयनित शिक्षकों में से कुछ शिक्षकों को वेतन दे दिया है। बचे हुए शिक्षकों को जल्द ही वेतन व एरियर दे दिया जाएगा।
डॉ. अनिल कुमार छंगाणी, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विज्ञान एमजीएसयू
डॉ. अनिल कुमार छंगाणी, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विज्ञान एमजीएसयू