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128 साल पहले बनी थी बीकानेर कैमल कोर, अब बीएसएफ में

locationबीकानेरPublished: Jan 04, 2018 09:59:37 am

Submitted by:

dinesh kumar swami

परिवहन के साथ खेती-बाड़ी और विभिन्न युद्धों तथा युद्धोतर कार्यों तक में ऊंटों की अहम भूमिका रही है।

Camel Corps

कैमल कोर

बीकानेर . रियासतकाल से ऊंट हमारे जीवन का अहम हिस्सा रहे हैं। परिवहन के साथ खेती-बाड़ी और विभिन्न युद्धों तथा युद्धोतर कार्यों तक में ऊंटों की अहम भूमिका रही है। ऊंटों के उपयोग और स्वामी भक्ति को देखते हुए ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1889 में बीकानेर राज्य के तत्कालीन महाराजा गंगासिंह ने बीकानेर कैमल कोर (गंगा रिसाला) की स्थापना की। इस गंगा रिसाला के लिए न केवल सेना में ऊंटों की भर्ती की गई, बल्कि ऊंटों का पंजीयन भी किया गया।
सर्दी से बचाव के लिए गंगा रिसाला में ऊंटों के लिए कम्बल, गुणवत्तापूर्ण चारा, ऊंटों की देखभाल के लिए कर्मचारियों की भी व्यवस्था थी। अभिलेखागार विभाग में मौजूद गंगा रिसाला के मूल अभिलेखों और ऐतिहासिक दस्तावेजों को लेकर प्रकाशित की गई पुस्तक ‘गंगा रिसाला’ में बीकानेर कैमल कोर की स्थापना से लेकर इस कोर की ओर से न केवल देश में बल्कि विश्व के कई देशों में किए गए साहसिक युद्धों तथा युद्धोतर कार्यो को प्रकाशित किया गया है।
इन युद्धों में लिया भाग
बीकानेर राज्य की कैमल कोर यानि गंगा रिसाला के योद्धाओं और ऊंटों ने अपने शौर्य के बल पर वीरता और अदम्य साहस से परचम फहराया। अभिलेखागार विभाग के निदेशक के अनुसार गंगा रिसाला ने चीन का बक्सर विद्रोह 1900 ईस्वी, अफ्रीका महाद्वीप के देश सोमालीलैण्ड में विद्रोह 1902-04, प्रथम विश्व युद्ध 1914-1919, द्वितीय विश्व युद्ध 1939-1945 प्रमुख है।
प्रथम विश्व युद्ध में 548 ऊंटों ने लिया भाग
‘गंगा रिसाला’ के अनुसार प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए गंगा रिसाला सेना ने मिश्र में मोर्चा संभाला। इस कैमल कोर में 450 व्यक्ति शामिल थे। जिसमें 16 अधिकारी, 434 रैक एण्ड फाइल, 81 फालोअर्स थे। इस युद्ध में 548 ऊंटों ने भाग लिया। इसमें परिवहन के ऊंट भी शामिल थे जबकि 350 व्यक्तियों को रिजर्व रखा गया था।
स्वेज नहर पर थी तैनात
गंगा रिसाला की बहादुरी व शौर्य जगप्रसिद्ध रहा है। निदेशक के अनुसार स्वेज नहर की कोई ऐसी चौकी नहीं थी, जहां गंगा रिसाला की टुकड़ी तैनात न हो। सेना के अद्भुत शौर्य के कारण तुर्की सेना को कैनाल क्षेत्र से पीछे हटना पड़ा था। द्वितीय विश्व युद्ध में गंगा रिसाला कराची व अदन के मोर्चे पर तैनात रही। गंगा रिसाला पहली ऐसी सेना थी, जिसे मध्य पूर्व में सक्रिय सेवा पर लगाया गया।
यह है सफर
अभिलेखागार विभाग के निदेशक के अनुसार महाराजा गंगासिंह की ओर से गठित गंगा रिसाला देश की आजादी के बाद 1951 में जैसलमेर की ऊंट सेना में विलय कर दिया गया। जिसका समन्वित नाम गंगा-जैसलमेर रिसाला रखा गया। 1965 के युद्ध में इस सेना ने बीकानेर जैसलमेर बोर्डर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1975 में भारत की ऊंट सेना को विघटित किया गया, परन्तु गंगा रिसाला सीमा सुरक्षा बल की इकाई बीकानेर कैमल कोर के रूप में आज भी विद्यमान है।
मूल दस्तावेज प्रकाशित
अभिलेखागार विभाग की ओर से ‘गंगा रिसालाÓ पुस्तक में अभिलेखागार विभाग में सुरक्षित सौ के करीब बीकानेर कैमल कोर के मूल दस्तावेजों को प्रकाशित किया गया है। निदेशक के अनुसार इनमें ऊंटों का रजिस्ट्रेशन, वार्षिक, पंचवर्षीय प्रतिवेदन, सर्दी में ऊंटों को कम्बल की व्यवस्था, सवारों की भर्ती, ऊंटों का रजिस्ट्रेशन, विभिन्न युद्धों में भाग लेने का वर्णन इत्यादि मूल दस्तावेजों को पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया है।
शोधार्थियों को मिलेगा लाभ
अभिलेखागार में सुरक्षित गंगा रिसाला से संबंधित मूल दस्तावेजों सहित इसके गठन, व्यवस्था, युद्धों व युद्धोत्तर कार्यो में भाग लेने सहित कई महत्वपूर्ण मूल दस्तावेजों को ‘गंगा रिसालाÓ पुस्तक में प्रकाशित किए गए है। देश-विदेश के शोधार्थियों के लिए ऐतिहासिक तथा शोध संबंधी जानकारी यह पुस्तक उपलब्ध करवाएगी।
डॉ. महेन्द्र खडग़ावत, निदेशक, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर।

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