मुख्य रूप से साजी की उपज पाकिस्तान के बारानी इलाकों में होती है। पुलवामा अटैक के बाद भारत ने पाकिस्तान से आयातित सामग्री पर २०० फीसदी इम्पोर्ट ड्यूटी लगा दी थी। जिसका तोड़ निकालते हुए साजी का माफिया पनप गया था। कुछ लोग कानून की गलियां निकालते हुए, अफगानिस्तान के रास्ते साजी का आयात करने लगे थे।
सरकार निकाले कोई नया तरीका हाल ही में डीआरआइ डायरेक्टर ऑफ रेवेन्यू इन्टेलिजेंस ने इन व्यापारियों के जयपुर और बीकानेर के ठिकानों पर छापेमारी कर भारी घालमेल का पता लगाया था। बीकानेर के साजी कारोबारी गणेश बोथरा बताते हैं कि साजी के गुणों के कारण ही पापड़ का महत्व है। सरकार को साजी के आयात को हतोत्साहित करने के बजाय कोई ऐसा तरीका इजाद करना चाहिए। जिससे सरकार को राजस्व की प्राप्ति भी हो और साजी की आपूर्ति भी बाधित नहीं हो।
साजी से बढ़ती है भूख अकेले बीकानेर में ही करीब एक हजार करोड़ रुपए का पापड़ उद्योग है। इसके लिए साजी का आयात मुख्य रूप से पाकिस्तान से होता है। पाकिस्तान में नहरें नहीं होने से वहां की बंजर जमीन में साजी स्वत: ही पैदा होती है। साजी के पौधे को जला कर उसका रस निकाला जाता है। यह रस जब जम जाता है तो उसी का साजी कहा जाता है। साजी को आयुर्वेद के हिसाब से बहुत ही पाचक एवं भूख वर्धक माना जाता है। साजी के उपलब्ध नहीं होने से पापड़ खार जैसे विकल्पिक उपाय काम में लिए जाते हैं। पापड़ खार को कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है। गुजरात में इसकी फैक्ट्रियां हैं।
पापड़ उद्योग पर बुरा असर साजी को बीकानेर के पापड़ उद्योग की जान माना जाता है। साजी का आयात बाधित होने से पापड़ उद्योग पर बुरा असर पडऩा तय है। साजी एक प्राकृतिक घटक है, इसके उपलब्ध नहीं होने से पापड़ खार जैसे विकल्प काम में लिए जा सकते हैं। जो कामचलाऊ होते हैं।
– कन्हैयालाल सेठिया, पापड़ व्यापसायी, बीछवाल