इन सभी वारदातों में अधिकांश में युवाओं की संलिप्तता रही है। यह अपराध वे लोग कर रहे है तो तन से तो स्वस्थ है लेकिन यह दीमागी रूप से एक बीमारी से पीडि़त है, जिसे चिकित्सकी भाषा में तनाव, न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन (कैमिकल लोचा) कहते हैं। इससे पीडि़त व्यक्ति खुद की भावनाओं व व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रख पाता और अपराध करता है।
चिकित्सकों के मुताबिक अपराध जगत के यह लोग अत्यंत हिंसक, अहंकारी एवं नशे के आदि होते है। मनोचिकित्सकीय परीक्षण के दौरान यह व्यक्ति इम्पलसिव होते हैं। ऐसे व्यक्ति बचपन में ३६ प्रतिशत शारीरिक शोषण, २६ प्रतिशत यौन शोषण, ५० प्रतिशत मानसिक शोषण एवं १८ प्रतिशत नकारा किए होते हैं। ऐसे व्यक्ति शातिर एवं इमोसन लेस होते हैं। हर वारदात को योजनाबद्धा तरीके से अंजाम देते हैं। यह किसी भी वारदात को दो-तीन के साथ मिलकर अंजाम देते हैं। देशी कट्टा, हथौड़, गेसकटर व लोहे की रॉड इनके हथियार होते हैं। कोई भी वारदात करने से पहले यह रेकी कर खुद सावचेत होते हैं और सतर्क होकर वारदात को अंजाम देते हैं।
डराते है यह आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े डराते हैं। एनसीआरबी के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में देश में ६५ प्रतिशत लूट, डकैती व चोरी की वारदातें बढ़ी है। भारत में वर्ष २०१३-१४ में लूट, डकैती के ५८७ मामले सामने आए, जिनमें ३४.३ करोड़ की लूट-डकैती हुई। सन् २०१७-१८ में ९७२ के दर्ज हुए, जिसमें ४४.४ करोड़ की लूट हुई।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े डराते हैं। एनसीआरबी के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में देश में ६५ प्रतिशत लूट, डकैती व चोरी की वारदातें बढ़ी है। भारत में वर्ष २०१३-१४ में लूट, डकैती के ५८७ मामले सामने आए, जिनमें ३४.३ करोड़ की लूट-डकैती हुई। सन् २०१७-१८ में ९७२ के दर्ज हुए, जिसमें ४४.४ करोड़ की लूट हुई।
क्या है कलेप्टोमेनिया
कलेप्टोमेनिया एक ऐसा मानसिक विकार है, जिससे ग्रस्त व्यक्ति को चोरी, लूट जैसे अपराध करने की आदत लग जाती है। वह अपनी इस आदत पर नियंत्रण नहीं कर सकता। यह एक प्रकार का इम्पलसिव कंट्रोल डिसआर्डर है, इसमें व्यक्ति अपने भावनात्मक एवं व्यवहारात्मक गतिविधियोंपपर काबू करने की क्षमता कम हो जाती है। ऐसे लोगों ना इन चीजों की जरूरत होती है और ना ही अतिआवश्यकता होती है लेकिन फिर भी व्यक्ति अपनी लालसा, इच्छा पर नियंत्रण नहीं कर पाते और ऐसे अपराधों को अंजाम दे डालते हैं।
यह होते हैं लक्षण
– बिना जरूरत की चीजों को चुराने की तीव्र इच्छा को रोक न पाना
– चोरी, लूट, नकबजनी, छीना-झपटी करने के लिए उत्तेजित रहना
– अपराध करने के बाद पछतावा करना व शर्म महसूस करना
– बिना जरूरत की चीजों को चुराने की तीव्र इच्छा को रोक न पाना
– चोरी, लूट, नकबजनी, छीना-झपटी करने के लिए उत्तेजित रहना
– अपराध करने के बाद पछतावा करना व शर्म महसूस करना
सबसे बड़े कारण
कलेप्टोमेनिया के शिकार वही व्यक्ति होते हैं जो ज्यादा तनाव में रहते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण तनाव और न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन (कैमिकल लोचा)े यह है इलाज की विधि
– बिहेवियर मेडिफिकेशन थैरेपी
– फैमिली थैरेपी
– कोगनेटिव बिहेवियर थैरेपी
कलेप्टोमेनिया के शिकार वही व्यक्ति होते हैं जो ज्यादा तनाव में रहते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण तनाव और न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन (कैमिकल लोचा)े यह है इलाज की विधि
– बिहेवियर मेडिफिकेशन थैरेपी
– फैमिली थैरेपी
– कोगनेटिव बिहेवियर थैरेपी
मानसिक रूप से अस्वस्थ
लूट, चोरी व छीना-झपटी करने वाले आपराधिक प्रवृति के लोग मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं। वे कैसे न कैसे बचपन से ही नशे व चाइल्ड एबयूज के शिकार होते हैं। इनके मस्तिष्क के प्री फ्रंटल कोरटेक्स जो की जजमेंट एवं भावनाओं को नियंत्रित करता है, वह कम विकसित होता है, जिसके कारण यह चोरी, लूट, छीना-झपटी जैसे अपराध करते हैं। चिकित्सकीय भाषा में ऐसे व्यक्तियों में न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलित होता है और वे कलेप्टोमेनिया के शिकार होते हैं।
डॉ. सिद्धार्थ असवाल, मानसिक रोग विशेषज्ञ
लूट, चोरी व छीना-झपटी करने वाले आपराधिक प्रवृति के लोग मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं। वे कैसे न कैसे बचपन से ही नशे व चाइल्ड एबयूज के शिकार होते हैं। इनके मस्तिष्क के प्री फ्रंटल कोरटेक्स जो की जजमेंट एवं भावनाओं को नियंत्रित करता है, वह कम विकसित होता है, जिसके कारण यह चोरी, लूट, छीना-झपटी जैसे अपराध करते हैं। चिकित्सकीय भाषा में ऐसे व्यक्तियों में न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलित होता है और वे कलेप्टोमेनिया के शिकार होते हैं।
डॉ. सिद्धार्थ असवाल, मानसिक रोग विशेषज्ञ