बताया जाता है कि 70-80 साल पहले राठ मुस्लिम पशुपालक ने पाकि स्तान की थारपारकर, लाल सिंधी तथा साईवाल नस्लों की संकर राठी नस्ल विकसित की। बीकानेर जिले में लूणकरनसर, शेखसर, ढाणी पांडूसर, राणीसर में आज भी राठी नस्ल की गायों का 40, 50 या इससे ज्यादा संख्या के समूह हैं। श्रीगंगानगर के सरदारगढ़ इलाके में राठी नस्ल की गायें अधिक हैं। राठ मुस्लिम परिवारों की आजीविका का साधना ये गाय ही हैं।
ये परिवार अच्छी नस्ल की गायों को बेचने का काम करते हैं। गायों की कीमत दूध के हिसाब से तय होती है। बताया जाता है कि इन गायों की कीमत 50 हजार से 80 हजार रुपए तक है। लोग विश्वास के साथ इन्हें खरीदते हैं। हालांकि लूणकरनसर तथा सूरतगढ़ के 10-12 गांवों में अन्य जातियों के पशुपालकों के पास भी राठी गायें हैं।
लूणकरनसर के अलावा छतरगढ़, घड़साना में मुस्लिम पशुपालकों के पास राठी हर्ड है। उरमूल ट्रस्ट ने राठी गायों की नस्ल संवद्र्धन के लिए कार्य इन्हीं मुस्लिम परिवारों के क्षेत्र में किया है। ट्रस्ट राठी नस्ल संवद्र्धन के तहत राठी सांड का वीर्य कृत्रिम गर्भाधान के लिए केन्द्रों में उपलब्ध करवाता है।
अरविन्द ओझा, उरमूल ट्रस्ट
बीछवाल में राठी गायें दूध के लिए रखी हुई हैं। ये गायें लूणकरनसर, घड़साना, केला, श्रीगंगानगर से खरीदी हैं। कुछ गायें राठी की अमरीकन के साथ क्रॉस ब्रीड की भी हैं। राठी नस्ल इस इलाके के लिए अच्छी है।
असद खां, पशुपालक