चालान के बाद भी नहीं बच सकेंगे अपराधी
अपराधियों पर कानूनी शिकंजा कसने में आने वाली कठिनाइयों एवं कानूनी पेचीदगियों को दूर करने की कवायद शुरू हो गई है। राजस्थान राज्य न्यायिक अकादमी जोधपुर में पिछले दिनों न्यायिक और पुलिस अधिकारियों की बैठक में इस पर मंथन किया गया।

जयप्रकाश गहलोत.बीकानेर. अपराधियों पर कानूनी शिकंजा कसने में आने वाली कठिनाइयों एवं कानूनी पेचीदगियों को दूर करने की कवायद शुरू हो गई है। राजस्थान राज्य न्यायिक अकादमी जोधपुर में पिछले दिनों न्यायिक और पुलिस अधिकारियों की बैठक में इस पर मंथन किया गया।
इसके बाद पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग ने पुलिस की ओर से अनुसंधान पत्रावली न्यायालय में पेश करते समय अपराधियों और अन्य पक्षकारों के पहचान दस्तावेज संलग्न करना जरूरी कर दिया है। न्यायिक-पुलिस अधिकारियों के मंथन में यह भी निकलकर आया कि गिरफ्तारी के इंतजार में अनुसंधान अधिकारी चालान पेश नहीं करते।
इसके लिए तय किया गया कि अनुसंधान अधिकारी जांच पूरी कर गिरफ्तारी नहीं होने पर भी धारा १७३ (२) के तहत अभियुक्तों के विरूद्ध चालान पेश कर सकेंगे। बाद में गिरफ्तारी होने पर रिकवरी की जा सकती है और रिमांड भी लिया जा सकता है। अतिरिक्त साक्ष्य एकत्र कर अनुसंधान जारी रखने की आवश्यकता हो तो पुलिस अधीक्षक से अनुमति ली जाए।
पालना करेंगे
&न्यायिक कार्यों के संबंध में पुलिस मुख्यालय से दिशा-निर्देश मिले हैं। इनके बारे में अधीनस्थ अधिकारियों-कर्मचारियों को बता दिया गया है, जिनकी पालना सुनिश्चित कराई जाएगी।
प्रदीप मोहन शर्मा, पुलिस अधीक्षक
मादक पदार्थ जैसे गंभीर प्रकरणा मेंं पुलिस अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए, जिससे तकनीकी खामी का लाभ अभियुक्त नहीं ले सकें। एफएसएल रिपोर्ट न्यायालय में शीघ्र पेश की जाए। इसमें देरी के लिए लापरवाही व गलती करने वाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
कई प्रकरणों में जरूरी दस्तावेज तथा तामील-नोटिस शामिल नहीं किए जाते हैं। इसके लिए सूचनाकर्ता को एफआर पेश करने की तारीख पर न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित करें। विशेष प्रावधान के तहत पुलिस साक्षी कानून व्यवस्था में व्यस्त होने, जानकारी नहीं होने तथा उच्चाधिकारियों की अनुमति नहीं दिए जाने के कारण न्यायालय में उपस्थित नहीं होते हैं।
ऐसे में सीआइडी अपराध शाखा में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा, जो साक्षियों की
न्यायालय में उपस्थिति को सुनिश्चित करेगा। पीडि़तों को कानूनी मदद देने, मुआवजा देने के संबंध में जरूरी सूचना व जानकारी देनी होगी, ताकि पीडि़त को मदद मिल सके।
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