चंग-ढोलक पर धमाल, बनाने वाले बेहाल
आर्थिक मंदी से जूझ रहे चमड़ा व्यवसाय से जुड़े लोग, चंग के दाम बढ़े पर बिक्री घटी

बीकानेर. पशुओं की खाल से विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाने वाले परिवार आर्थिक मंदी से जूझ रहे है। पहले लॉक डाउन और फिर कोरोना काल ने चमड़ा व्यवसाय को प्रभावित किया है। चमडे के एक्सपोर्ट पर लगी पाबंदी का असर इस व्यवसाय पर नजर आ रहा है। स्थानीय स्तर पर पशु खाल की बहुतायात के चलते इसके दाम काफी कम हो गए है। गत वर्षो की तुलना में यह व्यवसाय पचास फीसदी तक रह गया है।
इस व्यवसाय में छाई मंदी का असर इसी बात से लगाया जा सकता है कि होली के बावजूद पशु खाल से बने चंग की मांग कम बनी हुई है। मजदूरी व केमिकल के भाव बढऩे के कारण गत वर्ष की तुलना में करीब पचास से सौ रुपए तक चंग के दाम में बढ़ोतरी हुई है। यहीं नहीं पशु चमड़ा सस्ता होने के बादवजूद ढोलक, ढोल, नगाड़ा, तबला, पांव की जूती, बैल्ट, ऊंट की पलान, पट्टे आदि का काम भी सामान्य है।
चमड़ा अधिक, खपत कम
पशु चमड़ा व्यवसाय से जुड़े मोहम्मद आरिफ नागौरा के अनुसार चमड़े के एक्सपोर्ट पर लगी रोक से यह व्यवसाय मंदी से जूझ रहा है। स्थिति यह है कि पशु चमड़ा बड़ी मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन खरीददार नहीं मिल रहे है। इससे इनके दाम पचीस फीसदी तक रह गए है। चमड़ा व्यवसाय से जुड़ी फैक्ट्रिया की ओर से पशु खाल की डिमांड बहुत कम है। मृत पशुओं से मिलने वाला चमड़ा अधिक है, लेकिन इसके अनुपात में खपत और मांग काफी कम है।
सैकड़ो परिवार है जुड़े
जिले में शहर से गांव-गांव तक इस व्यवसाय से जुड़े परिवार है। नागौरा के अनुसार जिले में शहर से गांवों तक पांच सौ अधिक परिवार है जो पीढ़ी दर पीढी इसी व्यवसाय से जुड़े है। वहीं लगभग हर गांव में इस व्यवसाय से जुड़े लोग है। शहर में दो दर्जन से अधिक दुकानें और बडे स्तर पर आधा दर्जन से अधिक स्थानों पर चमड़े का काम होता है, लेकिन सभी मंदी से जूझ रहे है।
मजदूरी बढ़ी, बिक्री घटी
तबला, ढोलक, ढोल, चंग और नगाड़ा आदि बनाने के काम से जुड़े मोहम्मद फारुख और लियाकत अली बताते है कि पिछले डेढ से दो साल में चमड़ा व्यवसाय आधा भी नहीं रहा है। जो पशु चमड़ा 80 से 100 रुपए तक बिकता था, अब 25 से 30 रुपए में बिक रहा है। मजदूरी बढ़ गई है। बिक्री घट गई है। होली के बावजूद चंग की उतनी मांग नहीं है जो हमेशा रहती है। चंग की दर बढ़ी है, लेकिन बिक्री नहीं।
शहर में मांग घटी
होली के अवसर पर चंग पर थाप और छमछमा की लय के बीच देर रात तक धमाल गीतों की गूंज हर ओर सुनाई देती है। चंग बिक्री से जुड़े मोहम्मद सलीम के अनुसार चंग की बिक्री लगभग आधी रह गई है। खरीद्दार भी शहर की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक आ रहे है। पशु चमड़े से बने चंग 500 से 750 रुपए तक बिक रहे है, जबकि फाइबर से बने इन्ही आकार के चंग 300 से 450 रुपए तक बिक रहे है। फाइबर चंग सस्ती होने का असर भी पशु चमड़े से बने चंग की बिक्री पर पड़ा है।
व्यवसाय में मिले सहयोग
पशु चमड़ा व्यवसाय से जुड़े मोहम्मद आरिफ और मोहम्मद आरिफ नागौरा का कहना है कि चमड़ा व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए सरकार के पास योजना नहीं है। यह मेहनत और पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला व्यवसाय है। व्यवसाय में बढ़ोतरी के लिए योजनाएं नहीं है। ऋण भी नहीं मिल रहा है। पहले देशी रंगाई पर ऋण की सुविधा थी, वर्तमान में यह सुविधा नहीं मिल रही है।
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