कोरोना मरीजों के लगातार बढ़ते आंकड़ों और लॉकडाउन के कारण इस बार सावन रूखा-रूखा है। मंदिरों के बाहर न तो मेले सा माहौल है और ना ही घंटियों की टंकार सुनाई देती है। देर रात तक चलने वाले भजन-कीर्तन और गोठों की मण्डलियों की हंसी-ठिठोली भी नहीं है। मंदिरों में केवल पुजारी ही कोरोना को लेकर जारी एडवाइजरी की पालना करते हुए पूजन-आरती कर रहे हैं।
न बारिश, न गंठे
सावन में बारिश के पानी से तालाब भर जाते हैं। तालाबों के आस-पास, मंदिरों और बगीचियों में गोठ होने से रौनक रहती है। कोरोना के कारण इस बार एेसा नहीं है। बारिश भी इतनी नहीं हुई कि तालाब भर जाएं। सावन के बावजूद इस बार गोठ और गंठों के नजारे नहीं हैं। गली मोहल्लों में सन्नाटा पसरा है। इससे लोग मायूस हैं।
सावन में बारिश के पानी से तालाब भर जाते हैं। तालाबों के आस-पास, मंदिरों और बगीचियों में गोठ होने से रौनक रहती है। कोरोना के कारण इस बार एेसा नहीं है। बारिश भी इतनी नहीं हुई कि तालाब भर जाएं। सावन के बावजूद इस बार गोठ और गंठों के नजारे नहीं हैं। गली मोहल्लों में सन्नाटा पसरा है। इससे लोग मायूस हैं।
पहली बार हुआ एेसा 90 वर्षीय कन्हैयालाल ओझा ने बताया कि संभवतया यह पहला अवसर है, जब सावन में शिवालयों में न रुद्राभिषेक के दौर चल रहे हैं, ना ही मंदिरों में हर-हर महादेव के जयकारे गूंज रहे हैं। घरों में ही अभिषेक-पूजन किया जा रहा है। ओझा के अनुसार कोरोना से बचाव पहली प्राथमिकता है। सभी लोग सरकार और प्रशासन के निर्देशों की पालना करें। घरों में रहें, सुरक्षित रहें।