छत्तरगढ़ क्षेत्र के बारानी खेतों में खरीफ फसल ग्वार, मोठ, मूंग व बाजरा के साथ खरपतवार के रूप में उगने वाला तुंबा अब सत्तासर, मोतीगढ़, केला, राजासर भाटियान, महादेववाली आदि गांवों के लोगों के लिए आमदनी का माध्यम बन गया है। क्षेत्र के व्यापारी इस खरीदने के बाद काटकर व सुखाकर आगे बेच रहे हैं।
सूखने के बाद एक क्विंटल तुंबे का वजन 6 या 7 किलोग्राम तक रह जाता है। इसके बाद दिल्ली, अमृतसर सहित अन्य शहरों के व्यापारी सूखा तुंबा खरीद लेते हैं। इसके अलावा भाखड़ी व सांटे की जड़ भी खूब बिक रही है। इससे जहां किसानों को खरपतवार से निजात मिल रही है। वहीं लोगों को भी रोजगार मिला है।
कंकराला व डंडी में तुंबे का व्यापार करने वाले खेमाराम जाट ने बताया कि हर वर्ष सीजन में दो सौ से तीन सौ क्विंटल तक यह माल तैयार कर व्यापारियों को बेचते हैं। तुंबा दो हजार रुपए किलो के हिसाब से बिकता है। इस तरह क्षेत्र में तुंबे का कारोबार करने वाले लोग तीन माह के सीजन में लाखों रुपए कमा रहे हैं।
पशुओं के चारे व दवा में उपयोग
&तुंबा का छिलका पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ देशी व आयुर्वेदिक औषधियों में भी काम आता है। इसके अलावा गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट आदि में रोगों में तुंबे की औषधि लाभदायक है। तुंबे की मांग दिल्ली, अमृतसर, भीलवाडा आदि में है। तुंबा, भाखड़ी व सांटे की जड़ से बनी देशी व आयुर्वेद औषधियां पीलिया, कमर दर्द आदि रोगों में काम आती है।
डॉ. संदीप खरे, प्रभारी, पशु चिकित्सालय, छत्तरगढ़
&क्षेत्र में लोग खरीफ फसल के साथ उगने वाली खरपतवार तुंबे का व्यापार कर रहे हंै। यह तुंबा आयुर्वेद औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए कृषि विभाग की ओर से कोई योजना नही है।
रामस्वरूप लेघा, कृषि पर्यवेक्षक, ग्राम पंचायत सत्तासर