बीकानेर

देखिये कैसे एक प्रगतिशील किसान ने देशी तकनीक अपनाकर बढ़ाया उत्पादन

गांव के प्रगतिशील किसान ने देशी तरीके से खेती कर शरीर को हानि पहुंचाने रसायन मुक्त फसल उत्पादन कर अनुकरणीय पहल की है।

बीकानेरSep 09, 2017 / 01:28 pm

dinesh kumar swami

फसल उत्पादन

Asgar Ali/तेजरासर. गांव के प्रगतिशील किसान भंवरलाल जाखड़ ने देशी तरीके से खेती कर शरीर को हानि पहुंचाने रसायन मुक्त फसल उत्पादन कर अनुकरणीय पहल की है। जाखड़ ने बताया कि फसलों में खतरनाक कीटनाशक के बजाय देशी तकनीक से गाय के गोबर से बनी वर्मी कम्पोस्ट उपयोग कर दोगुना उत्पादन किया जा सकता है।
 

उचित देखभाल तथा निश्चित समय पर पानी देकर पैदावार को बढाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इससे फसलों में बीमारी के साथ कीटों के प्रकोप को भी रोका जा सकता है। भंवरलाल पिछले 10 साल से कृषि कुओं पर खेती करते आ रहे है तथा अब खुद का कृषि फार्म बना लिया है तथा लगातार अच्छी फसल का उत्पादन ले रहे हैं।
 

स्वच्छता का रखते विशेष ध्यान
दिलचस्प बात यह है कि किसान भंवरलाल जाखड़ गांव से जब भी अपने खेत जाते हैं तो खेत के अंदर जाने से पहले जूते चप्पल खोल कर पूरी तरह से साफ कर लेते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से दूसरों के खेत के कीट उनके खेत में प्रवेश नही कर पाएंगे। इससे फसल में बीमारी लगने का खतरा नही रहता है। खेत आने वाले लोगों को भी जूते खोलकर आने को कहते है।
 

पड़ोस के किसान किसनलाल जाखड़ ने बताया कि भंवरलाल जाखड़ फसल की समय- समय पर देखभाल करते रहते हैं। इस तरीके से अन्य किसानों से कम लागत पर ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। वे लम्बे समय से मूंगफली, चना, गेहूं आदि फसल लेते आ रहे हैं। जाखड़ ने बताया कि यदि समय पर खाद, बीज, पानी आदि का ध्यान रखा जाए तो निसंदेह अच्छा फसल उत्पादन कर सकते है।
 

बागवानी की योजना
उन्होंने बताया कि आगामी समय में खेत में पपीत,े खजूर व नींबू उगाने की योजना है तथा इसकी अभी से तैयारी में लगा हूं। क्षेत्र के किसानों ने भंवरलाल की खेती करने की देशी तरीके को काफी सराहा है तथा समय-समय पर फसल उत्पादन बढ़ाने की सलाह लेने पहुंचते हैं।
 

किसान भी प्रेरित
देशी तरीके से खेती पर फसल उत्पादन में वृद्धि के बाद आस-पास के किसान भी इसके प्रति रूचि दिखा रहे हैं। किसानों के अनुसार इस प्रकार की तकनीक से जहां फसल में कीट नहीं लगता है। वहीं रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव से भी बचा जा सकता है। साथ ही कीटनाशकों पर खर्च होना वाला पैसा भी बचाया जा सकता है। यह तकनीक फसलों के लिए उचित बताई जा रही है। अब क्षेत्र के किसान भी इस प्रकार की खेती अपनाने लगे है तथा जानकारी के लिए जाखड़ के पास पहुंच रहे हैं।

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